इस विधेयक का उद्देश्य सांसदों को विधेयकों और प्रस्तावों पर मतदान के दौरान अपने राजनीतिक दल से स्वतंत्र रुख अपनाने की अनुमति देना है।
- इससे कानून-निर्माण की बेहतर प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा और सांसदों को 10वीं अनुसूची के तहत लागू “व्हिप-आधारित निरंकुशता” (Whip-driven tyranny) से मुक्ति मिलेगी।
10वीं अनुसूची के तहत व्हिप लागू करने की आवश्यकता क्यों है?
- गैर-सिद्धांतवादी या अनैतिक दलबदल को रोकना: वर्ष 1985 से पहले सांसदों या विधायकों द्वारा व्यक्तिगत लाभ के लिए बार-बार राजनीतिक दल बदलना सामान्य घटना हो गई थी। इसे ‘आया राम–गया राम’ राजनीति की संज्ञा दी गई।
- निर्वाचित प्रतिनिधियों को धन, पद या अन्य प्रकार के लाभ की लालच देकर लुभाने की प्रक्रिया को “राजनीतिक दल-बदल (हॉर्स ट्रेडिंग)” कहते हैं।
- राजनीतिक और सरकार की स्थिरता सुनिश्चित करना: बार-बार होने वाले दल-बदल के कारण बिना नए निर्वाचन कराए कार्यकाल पूरा करने से पहले ही सरकारें गिर जाती थीं। इससे जनमत का अपमान होता था।
- राजनीतिक दल में अनुशासन को बढ़ावा देना: बजट प्रस्ताव, विश्वास मत, महत्वपूर्ण विधेयकों पर परिचर्चा या मतदान के दौरान किसी राजनीतिक दल के सदस्यों को एकजुट होकर सहयोग करने की आवश्यकता होती है।
व्हिप की आलोचना क्यों होती है?
- प्रतिनिधित्व आधारित लोकतंत्र को कमजोर करना: निर्वाचित प्रतिनिधि सदन में किसी मुद्दे पर अपनी अंतरात्मा या अपने मतदाताओं की भावना के अनुसार मतदान नहीं कर पाते।
- विरोध के स्वर को दबाना: आलोचकों का तर्क है कि व्हिप सांसदों को राजनीतिक दल के नेतृत्वकर्ता का “रबर-स्टांप” बना देता है। साथ ही, यह विचार-विमर्श आधारित परिचर्चा को कमजोर करता है।
- यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त “वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के मूल अधिकार को भी कमजोर करता है।
- सरकार की अस्थिरता रोकने में विफल: 2022 के महाराष्ट्र विधानसभा के मामले जैसे उदाहरणों से स्पष्ट है कि व्हिप के प्रावधान के बावजूद दलबदल, हॉर्स ट्रेडिंग और कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार का गिरना जारी है।
व्हिप के बारे में
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