प्रदूषणकारी उद्योगों के विरुद्ध उपाय
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अपने ध्यान को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) से बढ़ाकर, एनसीआर के बाहर स्थित प्रदूषणकारी उद्योगों को भी शामिल कर लिया है। यह पहल पहले मुख्य रूप से पराली जलाने, ईंट भट्ठों और ताप विद्युत संयंत्रों के उत्सर्जन को लक्षित करने की नीति से एक बदलाव को चिह्नित करती है।
गैर-एनसीआर जिलों के लिए कार्य योजनाएँ
- CAQM ने दिल्ली से सटे चार राज्यों—हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब—को निर्देश दिया है कि वे गैर-एनसीआर जिलों में स्थित उद्योगों में कोयले को ईंधन स्रोत के रूप में समाप्त करने के उद्देश्य से कार्य योजनाएँ विकसित करें। इन योजनाओं को तीन महीने के भीतर CAQM को प्रस्तुत किया जाना है।
- लक्षित उद्योग: इन उद्योगों में स्टील मिलें, फाउंड्री, रिफ्रैक्टरी और सिरेमिक इकाइयाँ, सीमेंट इकाइयाँ, कागज और लुगदी मिलें, कपड़ा, खाद्य प्रसंस्करण और ईंट भट्ठे शामिल हैं, जो मुख्य रूप से कोयला, पेट कोक और फर्नेस तेल का उपयोग करते हैं।
स्वच्छ ईंधन की ओर संक्रमण
- दिल्ली-एनसीआर में 7,759 ईंधन-आधारित उद्योगों में से 7,449 ने प्राकृतिक गैस, बिजली, जैव ईंधन और बायोमास जैसे अनुमोदित, स्वच्छ ईंधनों पर संक्रमण कर लिया है।
- शेष 310 उद्योगों को या तो बंद कर दिया गया है या संचालकों ने स्वेच्छा से अपना कारोबार बंद कर दिया है।
अनुपालन और बंद होने का खतरा
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने दिल्ली-एनसीआर में 3,500 प्रदूषणकारी उद्योगों में से 2,254 को चेतावनी दी है कि यदि वे वायु प्रदूषण कम करने वाले उपकरण और उत्सर्जन की ऑनलाइन निगरानी करने वाली प्रणालियां स्थापित करने में विफल रहते हैं तो उन्हें बंद करना पड़ सकता है।
ताप विद्युत संयंत्रों के लिए भविष्य के उपाय
- CAQM ने प्रस्ताव दिया है कि दिल्ली से 300 किलोमीटर के दायरे में कोई भी नया कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र स्थापित नहीं किया जाना चाहिए तथा आयोग मौजूदा कोयला आधारित संयंत्रों को गैस आधारित संयंत्रों में बदलने पर भी विचार कर रहा है।
- वर्तमान में इस दायरे में 35 इकाइयों वाले 11 ताप विद्युत संयंत्र हैं जिनकी कुल स्थापित क्षमता 13,575 मेगावाट है, जो सल्फर डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण में योगदान करते हैं।
ईंट भट्टे और बायोमास उपयोग
- गैर-एनसीआर जिलों के ईंट भट्ठों को सह-दाहन (co-firing) के लिए धान के पुआल आधारित बायोमास छर्रों या ब्रिकेट्स का उपयोग करना आवश्यक है।
- इन भट्ठों के लिए 1 नवंबर से 20% बायोमास ईंधन प्राप्त करने का लक्ष्य है, जिसे नवंबर 2022 तक 50% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।