बैंक स्वामित्व पर भारतीय रिजर्व बैंक की नीति
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंक स्वामित्व की अपनी नीति को "स्किन इन द गेम" (प्रवर्तकों की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी) के बजाय 'विविध स्वामित्व' को बढ़ावा देने की ओर स्थानांतरित कर दिया है।
- यह परिवर्तन हाल ही में विदेशी संस्थानों को भारतीय बैंकों में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करने की दी गई स्वीकृतियों से स्पष्ट होता है।
प्रारंभिक विकास
- इस नीति की शुरुआत 2001 में कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड (KMBL) से हुई थी, जहाँ प्रवर्तकों के पास शुरू में 61% इक्विटी थी, जिसे बाद में घटाकर 49% करने की आवश्यकता पड़ी।
2013 में नीतिगत बदलाव
- RBI ने अपने दिशा-निर्देशों को संशोधित किया, जिसके तहत बैंकों को 'पूर्ण स्वामित्व वाली गैर-परिचालन वित्तीय होल्डिंग कंपनी' (NOFHC) के माध्यम से स्थापित करना अनिवार्य कर दिया गया।
- प्रवर्तक की शुरुआती 40% हिस्सेदारी को पांच साल के लिए 'लॉक-इन' किया गया, जिसे 12 वर्षों के भीतर घटाकर 15% करना था।
आगे के विनियम और अनुपालन
- 2016 तक, RBI ने विविध स्वामित्व को सुदृढ़ किया और मौजूदा बैंकों के लिए 15% शेयरधारिता की सीमा अनिवार्य कर दी।
- प्रमोटरों के विरोध के बावजूद, कोटक बैंक को नियमों का पालन करने के लिए अपनी प्रमोटर हिस्सेदारी कम करनी पड़ी।
विवाद और समझौते
- कोटक बैंक ने 'गैर-परिवर्तनीय अधिमान्य शेयरों' (non-convertible preference shares) के माध्यम से प्रवर्तक हिस्सेदारी कम करने का प्रयास किया, जिससे मतदान अधिकारों को लेकर अदालती विवाद हुआ।
- एक समझौते के तहत उदय कोटक को 26% तक शेयर पूंजी रखने की अनुमति दी गई, लेकिन मतदान अधिकारों को 15% पर सीमित कर दिया गया, जिसे बाद में संशोधित कर 26% कर दिया गया।
विशेष परिस्थितियाँ और हाल के घटनाक्रम
- RBI कमजोर बैंकों में केंद्रित स्वामित्व की अनुमति देता है, जैसा कि CSB बैंक में 'फेयरफैक्स फाइनेंशियल्स' और लक्ष्मी विलास बैंक में 'DBS बैंक' के मामले में देखा गया है।
- यस बैंक और आरबीएल बैंक में हिस्सेदारी हासिल करने के लिए SMBC और NDB को दी गई हालिया मंजूरियां विनियमित संस्थानों के प्रति RBI की प्राथमिकता को दर्शाती हैं।
वर्तमान चुनौतियाँ और सिफ़ारिशें
- भारत की बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त घरेलू बैंकों और दीर्घकालिक पूंजी वाले उद्यमियों का अभाव है।
- RBI को बड़े गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFCs) को बैंकों में परिवर्तित होने की अनुमति देने वाले ढांचे पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
- भारत की ऋण आवश्यकताओं और आर्थिक विकास को पूरा करने के लिए घरेलू पूंजी पर जोर देना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
लेखक ने विदेशी पूंजी पर निर्भरता के बजाय घरेलू बैंकिंग क्षमताओं के विकास की वकालत करते हुए RBI के ढांचे के पुनर्मूल्यांकन का सुझाव दिया है।