सांस के जरिए अंदर जाने वाले सूक्ष्म प्लास्टिक: एक उभरता खतरा
नए शोध में सांस के जरिए शरीर में जाने वाले 10 माइक्रोमीटर से भी छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक कणों के खतरे को रेखांकित किया गया है, जो सीधे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करते हैं।
प्रोफेसर गोपाल कृष्ण दरभा के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में मानव श्वसन स्तर पर इन कणों का मापन किया गया।
- चारों शहरों में औसत सांद्रता: 8.8 µg/m3 ।
- प्रति निवासी दैनिक सेवन: 132 माइक्रोग्राम ।
- स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- भारी धातुओं और हार्मोन अवरोधकों जैसे विषाक्त सह-प्रदूषक।
- एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी हानिकारक सूक्ष्मजीवों का संचरण।
शहर-विशिष्ट अवलोकन
- दिल्ली और कोलकाता में सांस के जरिए अंदर जाने योग्य माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता सबसे अधिक थी, जो क्रमशः 14.18 µg/m3 और 14.23 µg/m3 थी ।
- मुंबई और चेन्नई: क्रमशः 2.65 µg/m3 और 4 µg/m3 के अपेक्षाकृत कम स्तर।
- सर्दियों की शामों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता में 74% की वृद्धि देखी गई।
माइक्रोप्लास्टिक के स्रोत और संरचना
- अधिकांश कणों का आकार 100 माइक्रोमीटर से कम है।
- इसके स्रोतों में सिंथेटिक वस्त्र, पैकेजिंग, टायर घिसाव, सौंदर्य प्रसाधन और लघु उद्योग शामिल हैं।
नीतिगत सिफारिशें
- एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना और प्राकृतिक फाइबर वाले कपड़ों को बढ़ावा देना।
- उत्सर्जन कम करने के लिए अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करना।
- यातायात पुलिसकर्मियों और श्रमिकों जैसे कमजोर समूहों की सुरक्षा के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता।
यह अध्ययन माइक्रोप्लास्टिक्स द्वारा उत्पन्न पर्यावरणीय संकट को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और भारत सरकार से निर्णायक कार्रवाई का आग्रह करता है। शोध में इस उभरते खतरे के प्रति जन-जागरूकता और वैज्ञानिक जांच बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।