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संसद ने शांति विधेयक पारित किया, जिससे भारत का परमाणु क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खुल गया है।

19 Dec 2025
1 min

शांति विधेयक का संक्षिप्त विवरण

संसद द्वारा हाल ही में 'सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया' (SHANTI) विधेयक पारित किया गया, जो पहले से राज्य-नियंत्रित परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी शुरू करके भारत की परमाणु ऊर्जा नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।

उद्देश्य और विधायी परिवर्तन

  • यह विधेयक परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 को निरस्त करने के लिए पेश किया गया था।
  • इसका उद्देश्य उन कानूनी प्रतिबंधों को हटाना है जो परमाणु ऊर्जा उत्पादन को सरकारी संस्थाओं तक सीमित करते थे।
  • इस विधेयक के पारित होने से भारत की ऊर्जा परिवर्तन रणनीति के तहत परमाणु ऊर्जा के विस्तार में तेजी लाने की सरकार की मंशा का संकेत मिलता है।

सरकार के घोषित उद्देश्य

  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए बिजली की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने में सहायता करें।
  • स्वच्छ ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करें और आने वाले दशकों के लिए ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाएं।

आलोचना और विरोध

  • ट्रेड यूनियनों और इंजीनियर संगठनों की आलोचना सुरक्षा, दायित्व और जवाबदेही संबंधी चिंताओं पर केंद्रित है।
  • ऑल-इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के साथ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है।
  • AIPEF का तर्क है कि यह कानून सुरक्षा उपायों और जवाबदेही तंत्र को कमजोर करता है।

उठाई गई विशिष्ट चिंताएँ

  • रिएक्टर आपूर्तिकर्ताओं के विरुद्ध ऑपरेटर के वैधानिक कानूनी अधिकार को समाप्त करना विवादास्पद है। इससे परमाणु दुर्घटनाओं की स्थिति में दायित्व उपकरण निर्माताओं से हटकर राज्य और नागरिकों पर स्थानांतरित हो सकता है।
  • मांगों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • शांति (SHANTI) विधेयक को वापस लेना।
    • कड़े दायित्व प्रावधानों की बहाली।
    • एक स्वतंत्र परमाणु नियामक की स्थापना।
    • उन्नत पर्यावरणीय और श्रम सुरक्षा उपाय।
    • परमाणु क्षेत्रों में विदेशी भागीदारी पर स्पष्ट संसदीय निरीक्षण।

विरोध प्रदर्शनों का उद्देश्य

इन विरोध प्रदर्शनों का उद्देश्य सरकार से शांति विधेयक पर पुनर्विचार करने और परमाणु ऊर्जा कानूनी ढांचे में सुधार करने से पहले व्यापक परामर्श करने का आग्रह करना है।

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