समिति ने बैंकिंग प्रणाली में तरलता बढ़ाने के लिए नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट्स (bps) और रेपो दर में 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती करने का निर्णय लिया।
तरलता प्रबंधन के लिए प्रमुख नीतिगत उपकरण
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR): यह किसी बैंक की कुल जमा राशि का वह अनुपात है, जिसे उसे नकदी के रूप में RBI के पास जमा करना होता है।
- बैंक CRR धन को कॉरपोरेट या व्यक्तिगत उधारकर्ताओं को उधार नहीं दे सकते तथा न ही उसे निवेश के उद्देश्यों से इस्तेमाल कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि RBI इस धन पर बैंकों को कोई ब्याज नहीं देता है।
- रेपो दर: रेपो दर (पुनर्खरीद दर), वह ब्याज दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को धन की कमी होने पर अल्पकालिक समय के लिए उधार देता है। यह आमतौर पर सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर दिया जाता है।
- तरलता समायोजन सुविधा (LAF): LAF से तात्पर्य RBI के उन कार्यों से है, जिसके माध्यम से वह बैंकिंग प्रणाली में/ से तरलता को बढ़ाता है/ कम करता है।
- इसमें ओवरनाइट के साथ-साथ टर्म रेपो/ रिवर्स रेपो (निश्चित और परिवर्तनीय दरें), SDF एवं MSF भी शामिल हैं।
- सांविधिक तरलता अनुपात (SLR): यह जमा राशि का वह न्यूनतम प्रतिशत है, जिसे वाणिज्यिक बैंक को तरल नकदी, सोना या अन्य प्रतिभूतियों के रूप में अपने पास रखना होता है।
- इसे RBI के पास जमा नहीं करना होता है, बल्कि बैंक इसे अपने पास ही रखते हैं। SLR का निर्धारण RBI द्वारा ही तय किया जाता है।
- अन्य उपकरण: बैंक दर, स्थायी जमा सुविधा (SDF) दर, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) दर, ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMOs), आदि।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) के बारे में
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