भारत में आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: चुनौतियाँ और समाधान
भारत विदेशी प्रजातियों का एक प्रमुख निर्यातक और आयातक दोनों रहा है, खास तौर पर सजावटी घरेलू व्यापार और जैव नियंत्रण उद्देश्यों जैसे क्षेत्रों में। इसके कारण आक्रामक विदेशी प्रजातियों में वृद्धि हुई है, पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव आया है और आर्थिक और पारिस्थितिक क्षति हुई है।
ऐतिहासिक संदर्भ और उदाहरण
- विशाल अफ्रीकी घोंघा 1847 में औपनिवेशिक काल में कलकत्ता में लाया गया था, जो अंततः भारत की सबसे लंबे समय से बनी हुई आक्रामक विदेशी प्रजाति बन गई। खराब संगरोध और निगरानी की कमी के कारण इसका प्रसार और भी बढ़ गया।
- वैश्विक व्यापार में योगदान: 1800 के दशक से वैश्विक व्यापार में वृद्धि ने जैविक आक्रमणों में योगदान दिया है, जिसके कारण 19वीं सदी के प्रारंभ तक विदेशी प्रजातियों की संख्या 20 गुना बढ़ गई।
- बैलस्ट जल और जैव प्रदूषण: बैलस्ट जल ले जाने वाले जहाज विदेशी प्रजातियों को अपने साथ ले आ सकते हैं, जैसा कि न्यूजीलैंड में एशियाई पैडल केकड़े के मामले में देखा गया है।
वर्तमान जोखिम कारक
- नये व्यापार समझौते: बदलते व्यापार समझौतों और नये संबंधों से महाद्वीपों के बीच नवीन आक्रामक प्रजातियों का प्रवाह बढ़ सकता है।
- बुनियादी ढांचे का अभाव: भारत सहित कई देशों में वस्तुओं की सख्ती से जांच करने के लिए बुनियादी ढांचे का अभाव है, जिससे आक्रामक प्रजातियों का खतरा बढ़ जाता है।
आर्थिक और पारिस्थितिक प्रभाव
- भारत को पिछले 60 वर्षों में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के कारण 127.3 बिलियन डॉलर (830 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ है, जिससे यह विश्व स्तर पर आर्थिक रूप से दूसरा सबसे अधिक प्रभावित देश बन गया है।
- राजकोषीय बोझ: अर्ध-जलीय आक्रामक प्रजातियां सार्वजनिक स्वास्थ्य और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण अधिक राजकोषीय बोझ पैदा करती हैं।
- ज्ञात आक्रामक प्रजातियों में से 3% से भी कम ने आर्थिक प्रभाव दर्ज किया है, जो डेटा रिपोर्टिंग में अंतराल को दर्शाता है।
भारत के लिए सिफारिशें
- बंदरगाहों पर कठोर जैव सुरक्षा उपायों को लागू करके तथा वास्तविक समय पर प्रजातियों पर नज़र रखने वाली प्रणालियाँ विकसित करके राष्ट्रीय नीति को सुदृढ़ बनाना।
- ज्ञान सृजन और प्रभाव आकलन के लिए सरकारी विभागों और शोधकर्ताओं के बीच सहयोग बढ़ाना।
- संगरोध सुविधाओं में व्यापार-पश्चात जैविक प्रभाव आकलन को अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए 'एक जैव सुरक्षा' फ्रेमवर्क को अपनाना।
व्यापार और प्रजातियों की आवाजाही की बढ़ती मात्रा के कारण दीर्घकालिक पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभावों को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। आक्रामक प्रजातियों के परिणामों को कम करने के लिए भारत की सीमावर्ती जैव सुरक्षा को मजबूत करना आवश्यक है।