आक्रामक विदेशी प्रजातियों का प्रभाव
आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ भारत में स्थानीय जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र में भारी व्यवधान पैदा कर रही हैं। ये प्रजातियाँ, जो अक्सर दुर्घटनावश या सजावटी उद्देश्यों के लिए लाई जाती हैं, स्थानीय वनस्पतियों और जीवों को विस्थापित करने और उनसे प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता रखती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नकारात्मक पारिस्थितिक और सामाजिक-आर्थिक परिणाम हो सकते हैं।
आक्रामक प्रजातियों के प्रमुख उदाहरण
- जल जलकुंभी (पोंटेडेरिया क्रैसिप्स)
- विश्व की सबसे खतरनाक आक्रामक प्रजातियों में से एक, यह धान के खेतों, झीलों और असम के काजीरंगा जैसे राष्ट्रीय उद्यानों को प्रभावित करती है।
- इससे मीठे पानी की मछलियों की 1,070 प्रजातियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
- लैंटाना कैमरा
- ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान प्रचलित यह कीट बड़े शाकाहारी जीवों के लिए संरक्षण प्रयासों में बाधा उत्पन्न करता है, क्योंकि यह उनके आवासों को अरुचिकर तथा आवागमन को कठिन बना देता है।
- इससे मानव-पशु संघर्ष में वृद्धि होती है, क्योंकि पशु नकदी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं।
- प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा
- मूल रूप से गुजरात में मृदा लवणीकरण से निपटने के लिए शुरू किया गया यह पौधा अब बन्नी घास के मैदान के 50-60% क्षेत्र को कवर कर चुका है, जिससे स्थानीय वन्यजीव और पारंपरिक प्रथाएं प्रभावित हो रही हैं।
- पीली पागल चींटी (एनोप्लोलेपिस ग्रेसिलिप्स)
- कीट नियंत्रण में भूमिका निभाने वाली देशी चींटियों की जनसंख्या को कम करता है, तथा अप्रत्यक्ष रूप से फसलों को नुकसान पहुंचाता है।
चुनौतियाँ और अनुसंधान आवश्यकताएँ
- विश्वभर में लगभग 37,000 विदेशी प्रजातियां हैं, जिनमें से लगभग 3,500 का प्रकृति और लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- भारत में अनुमानतः 139 आक्रामक विदेशी प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अधिकतर फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट हैं।
- सूक्ष्म स्तर पर वितरण और देशी प्रजातियों के साथ अंतःक्रिया के व्यापक दस्तावेजीकरण और समझ का अभाव प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालता है।
संरक्षण दुविधा
भारत में शोधकर्ताओं के सामने दुविधा है: क्या उन्हें संरक्षण योजना तैयार करने से पहले सभी प्रभावों का दस्तावेजीकरण करने का इंतजार करना चाहिए, या उन्हें समानांतर रूप से काम करना चाहिए?
- डॉ. आलोक बंग संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के लिए प्रभाव अध्ययन करने और साथ ही योजना तैयार करने की वकालत करते हैं।
- एक मानकीकृत मात्रात्मक दृष्टिकोण संचयी प्रभावों का मानचित्रण करने और प्रबंधन कार्यों को प्राथमिकता देने में मदद कर सकता है।
- हितधारकों और नागरिक विज्ञान पहलों के साथ सहयोग से आक्रामक प्रजातियों के दस्तावेज़ीकरण और समझ को बढ़ाया जा सकता है।
सिफारिशों
- आक्रामक प्रजातियों के प्रभावों का आकलन और प्रबंधन करने के लिए मानकीकृत तरीके विकसित करना।
- वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और प्रभावित समुदायों के बीच अंतःविषयक संचार को प्रोत्साहित करें।
- आक्रामक प्रजातियों के वितरण का मानचित्रण करने तथा संरक्षण रणनीतियों को सूचित करने के लिए नागरिक विज्ञान का उपयोग करें।
ये कदम आक्रामक प्रजातियों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने और भारत की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।