भारत-अमेरिका संबंध: एक महत्वपूर्ण विश्लेषण
वर्तमान रणनीतिक स्थिति
भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में हुई बातचीत से एक आशाजनक साझेदारी का संकेत मिला था। हालाँकि, हाल के घटनाक्रमों ने इस रिश्ते में तनाव और अनिश्चितताएँ पैदा कर दी हैं।
- भारत और अमेरिका को साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और भू-राजनीतिक हितों पर एकजुट देखा गया।
- नीतिगत असंगति और पुराने कूटनीतिक ढाँचे की ओर लौटने के कारण अब यह संबंध चुनौतियों का सामना कर रहा है।
चुनौतियों में योगदान देने वाले कारक
- ट्रम्प प्रशासन द्वारा दीर्घकालिक रणनीतिक संरेखण की तुलना में अल्पकालिक लेन-देन संबंधी लाभ की धारणा।
- "हाइफ़नेशन" की ओर लौटना - भारत और पाकिस्तान को समान रणनीतिक चिंताएँ मानना।
- आर्थिक संकेत वैश्विक विनिर्माण में भारत की भूमिका को कमजोर कर रहे हैं। ये विशेष रूप से एप्पल जैसी कंपनियों को भारत में विस्तार करने से हतोत्साहित कर रहे हैं।
- एच-1बी वीज़ा व्यवस्था को प्रभावित करने वाली आव्रजन नीतियां, भारत और अमेरिका के बीच तकनीकी सहयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- वाशिंगटन के पाकिस्तान के साथ मधुर होते संबंध, जिसे आतंकवाद-विरोध में एक "अभूतपूर्व साझेदार" बताया गया।
साझेदारी में चुनौतियाँ
- भारत की रणनीतिक संस्कृति धैर्यपूर्ण और सभ्यतापूर्ण दृष्टिकोण को प्राथमिकता देती है। यह अमेरिका की त्वरित सौदेबाजी की प्राथमिकता के विपरीत है।
- सीमापार आतंकवाद में योगदान देने के इतिहास के बावजूद, अमेरिकी सुरक्षा प्रतिष्ठान की पाकिस्तान से पुरानी नज़दीकियाँ रही हैं।
- प्रभाव में संरचनात्मक विषमताओं के कारण भारत के रणनीतिक इरादों के बारे में गलतफहमियां पैदा हो रही हैं।
भारत के लिए आगे की राह
- सामरिक परेशानियों के बावजूद रणनीतिक संरेखण बनाए रखना और शांत, लगातार कूटनीति का अनुसरण करना।
- कांग्रेस और भारतीय अमेरिकी प्रवासियों का लाभ उठाते हुए, पारंपरिक कूटनीति से परे अमेरिकी हलकों में जुड़ाव को गहरा करना।
- निवेश और विनिर्माण तर्क को सुदृढ़ करने के लिए आंतरिक आर्थिक सुधारों में तेजी लाना।
- विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्रों में, आव्रजन संबंधी चिंताओं को साझा अवसरों के रूप में देखना।
अमेरिका को क्या कदम उठाने चाहिए
- शीत युद्ध की रूपरेखा को त्यागना तथा भारतीय विनिर्माण और प्रतिभा गतिशीलता को परिसंपत्ति के रूप में मान्यता देना।
- हिंद-प्रशांत रणनीति के भाग के रूप में भारत की क्षेत्रीय क्षमता निर्माण पहल में निवेश करना।
- लोकतांत्रिक और नियम-आधारित विश्व व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हुए साझेदारी के नैतिक उद्देश्य को पुनः स्थापित करना।
ऐतिहासिक संदर्भ और भविष्य का दृष्टिकोण
- भारत-अमेरिका संबंधों में एकसमान वृद्धि नहीं हुई है। 2005 का असैन्य परमाणु समझौता इसका एक उदाहरण है।
- वर्तमान अस्थिरता को साझेदारी के अंत का संकेत मानने के बजाय, इसे संबंधों के नवीनीकरण और गहरे सहयोग का अवसर मानना चाहिए।
- दोनों देशों को एशिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि करनी चाहिए।