20% इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (E-20) पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में 20% इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (ई-20) की शुरूआत को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन मामले की अध्यक्षता कर रहे थे।
याचिकाकर्ता की चिंताएँ
- याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने स्पष्ट किया कि याचिका इथेनॉल मिश्रण के खिलाफ नहीं है, बल्कि अप्रैल 2023 से पहले निर्मित वाहनों के लिए इथेनॉल मुक्त पेट्रोल की मांग की गई है, जो E-20 के अनुरूप नहीं हैं।
- पुराने वाहनों के जोखिमों पर प्रकाश डालने वाली 2021 की नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया गया और कहा गया कि E-20, E-0 या E-10 विकल्प प्रदान किए बिना ईंधन दक्षता में लगभग 6% की कमी आ सकती है।
- तर्क दिया गया कि अनिवार्य E-20 जागरूकता की कमी, खराब पंप लेबलिंग, इंजन क्षरण, कम माइलेज और अस्वीकृत बीमा दावों के कारण वाहन मालिकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- ध्यान देने वाली बात यह है कि इथेनॉल के लागत लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचाए गए हैं।
सरकार का बचाव
- केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि यह नीति गन्ना किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार की गई है।
प्रतिक्रिया और प्रभाव
- ISMA के महानिदेशक दीपक बल्लानी ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया तथा स्वच्छ ईंधन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
- उन्होंने निर्धारित समय से पांच वर्ष पहले 20% सम्मिश्रण लक्ष्य प्राप्त करने के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डाला, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को 1.18 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया।
- 1.36 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बचत हुई।
- 698 लाख टन CO₂ उत्सर्जन में कमी आई।
- किसानों, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए नीतिगत लाभों पर जोर दिया गया तथा सतत ऊर्जा परिवर्तन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ किया गया।