अंतर्राष्ट्रीय महासागरीय जल के लिए भारत का नया कानून
भारत दो वर्ष पहले अंतिम रूप दी गई उच्च सागर संधि के बाद, अंतर्राष्ट्रीय महासागरीय जल में अपने हितों की रक्षा के लिए एक नया कानून लागू करने जा रहा है।
उच्च सागर संधि अवलोकन
- उद्देश्य: इसे राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता (BBNJ) के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य समुद्री जैव विविधता के सतत उपयोग को बढ़ावा देते हुए प्रदूषण और अत्यधिक संसाधन निष्कर्षण को रोकना है।
- संरक्षित क्षेत्र: उच्च समुद्र में राष्ट्रीय उद्यानों या वन्यजीव रिजर्वों के समान संरक्षित क्षेत्र स्थापित करता है।
- वैश्विक साझा अधिकार: उच्च सागर, राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर, वैश्विक उपयोग के लिए खुले महासागरीय क्षेत्रों का 64% है।
- विनियमन: समुद्र तल खनन जैसी निष्कर्षण गतिविधियों को विनियमित करने के लिए उपाय प्रस्तुत किए गए हैं।
- न्यायसंगत लाभ साझाकरण: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ साझा करने के प्रावधान।
- कानूनी फ्रेमवर्क: समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) के तहत एक कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन।
भारत की विधायी तैयारी
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय उपाध्याय के नेतृत्व में 12 सदस्यीय मसौदा समिति को संधि के प्रावधानों के अनुरूप कानून का मसौदा तैयार करने का कार्य सौंपा गया है।
- अनुसमर्थन स्थिति: भारत ने BBNJ पर हस्ताक्षर तो किए हैं, लेकिन उसका अनुसमर्थन नहीं किया है; 55 देशों ने इसका अनुसमर्थन किया है। यह संधि 60 अनुसमर्थनों के बाद लागू होगी।
- संस्थागत क्षमताएं: संधि के तहत देशों को प्रमुख परियोजनाओं के लिए समुद्री प्रभाव आकलन करने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए संस्थागत विकास आवश्यक है।
- आर्थिक लाभ: लाभ-साझाकरण प्रावधानों के उपयोग के लिए विशेष विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
समिति का कार्य भारत के समुद्री हितों की रक्षा करने, समुद्री संरक्षण को बढ़ावा देने तथा संधि के दिशा-निर्देशों के अनुरूप लाभ तंत्र तैयार करने के लिए एक व्यापक कानून का मसौदा तैयार करना है।