व्यक्तित्व अधिकारों का संरक्षण
दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऋतिक रोशन और कुमार सानू जैसी मशहूर हस्तियों के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए उनके नाम, चित्र या आवाज़ के अनधिकृत व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगा दी है। यह विषय जनरेटिव कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Generative AI) के प्रसार के कारण विशेष रूप से प्रासंगिक हुआ है, क्योंकि इस तकनीक ने अत्यंत यथार्थ प्रतीत होने वाले प्रतिरूप का निर्माण सस्ता तथा तीव्र बना दिया है।
जनरेटिव एआई का प्रभाव
जनरेटिव एआई ने पहचान की अनुचित या भ्रामक उपयोगिता से उत्पन्न प्रतिष्ठात्मक एवं आर्थिक जोखिमों में वृद्धि की है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं —
- भारतीय सीएफओ (CFOs) द्वारा कृत्रिम रूप से तैयार संदेशों (spoofed communications) के आधार पर बड़े वित्तीय हस्तांतरण को अधिकृत करना।
- एक ब्रिटिश इंजीनियरिंग कंपनी को अपने नेतृत्व के एआई-जनरेटेड संस्करणों के साथ एक वीडियो कॉल के दौरान वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा।
- भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों ने सीईओ के फर्जी वीडियो में शेयर टिप्स को बढ़ावा दिए जाने के बाद चेतावनी जारी की है।
न्यायिक प्रतिक्रिया
भारत, अमेरिका और ब्रिटेन की अदालतें एआई-जनित प्रतिरूपण पर निजता और बौद्धिक संपदा के सिद्धांतों को लागू कर रही हैं। हाल के भारतीय फैसलों ने संरक्षण योग्य विशेषताओं का विस्तार किया है, जिसमें अब न केवल नाम और छवियाँ, बल्कि आवाज़, हाव-भाव और तौर-तरीके भी शामिल हैं।
कंपनियों के लिए दिशानिर्देश
कंपनियों को पहचान प्रबंधन को ट्रेडमार्क संरक्षण के समान एक महत्वपूर्ण मुद्दा समझना चाहिए। प्रमुख उपायों में शामिल हैं:
- पर्सोना सरफेस एरिया (PSA) का आकलन करना - उन चैनलों की संख्या जहाँ कंपनी के प्रमुख व्यक्ति (लीडर) दिखाई देते हैं।
- टाइम-टू-ट्रुथ (TTT) को कम करना - नकली इंप्रेशन और सत्यापित खंडन के बीच के समय के अंतर को कम करना।
- पहचान चिह्नों का पंजीकरण और सत्यापन करना, तथा अनुबंधों में सुरक्षात्मक धाराएं शामिल करना।
- नियमित निगरानी करना तथा त्वरित संचार प्रोटोकॉल स्थापित करना।
निष्कर्ष
डीपफेक के युग में, पहचान प्रबंधन न केवल मशहूर हस्तियों के लिए, बल्कि कंपनियों के लिए भी एक प्रशासनिक मुद्दा है। उचित उपाय झूठे विज्ञापनों को रोक सकते हैं और आर्थिक तथा प्रतिष्ठा संबंधी हितों की रक्षा कर सकते हैं।