भारत में सरोगेसी की कानूनी व्याख्याएँ और चुनौतियाँ
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
सर्वोच्च न्यायालय दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी से संबंधित कानूनी पहलुओं की जांच कर रहा है तथा कानून के नियामक दायरे पर सवाल उठा रहा है।
केस संदर्भ
- द्वितीयक बांझपन का सामना कर रहे एक दम्पति ने सरोगेसी के लिए याचिका दायर की, क्योंकि सरोगेसी अधिनियम के तहत दूसरे बच्चे के लिए इसे प्रतिबंधित किया गया है।
- उनके वकील ने तर्क दिया कि प्रजनन संबंधी विकल्प एक निजी मामला है और राज्य को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
द्वितीयक बांझपन को समझना
- इसे पहले से बच्चा होने के बाद गर्भधारण करने या गर्भावस्था को पूर्ण अवधि तक ले जाने में असमर्थता के रूप में परिभाषित किया गया है।
- कारणों में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, एंडोमेट्रियोसिस और जीवन-शैली कारक शामिल हैं।
सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021
- धारा 4(iii)(C)(II) के तहत, सरोगेसी के लिए पात्रता के लिए किसी जीवित बच्चे की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि बच्चे को विशिष्ट चुनौतियाँ न हों।
- सरकार का तर्क है कि सरोगेसी मौलिक अधिकार नहीं है क्योंकि इसमें किसी अन्य महिला का शरीर शामिल है।
न्यायिक विचार
- न्यायालय इस बात का मूल्यांकन कर रहा है कि क्या द्वितीयक बांझपन के लिए सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने से प्रजनन संबंधी विकल्प सीमित हो जाते हैं।
- हाल के निर्णयों ने जमे हुए भ्रूण वाले दम्पतियों के लिए सरोगेसी हेतु आयु संबंधी विशिष्टताओं में ढील दी है।
कानून का उद्देश्य
- इस कानून का उद्देश्य प्रजनन केन्द्रों को विनियमित करते हुए वाणिज्यिक सरोगेसी और शोषण को रोकना है।
- प्राथमिक और द्वितीयक बांझपन में अंतर करने पर बहस को अत्यधिक सूक्ष्म माना जाता है।
वर्तमान मानदंड और व्याख्या
- भारत में बच्चों की संख्या को सीमित करने वाला कोई कानून नहीं है, यद्यपि कुछ क्षेत्रों में दो बच्चों की नीति को प्रोत्साहित किया जाता है।
- कानून की समावेशी व्याख्या से माता-पिता को मदद मिल सकती है और साथ ही व्यावसायिक सरोगेसी को रोका जा सकता है।