भारत के सेवा क्षेत्र में रोजगार का अवलोकन
नीति आयोग ने 'भारत का सेवा क्षेत्र: रोजगार प्रवृत्तियों और राज्य-स्तरीय गतिशीलता से अंतर्दृष्टि' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट भारत के सेवा क्षेत्र में रोजगार की स्थिति पर प्रकाश डालती है तथा इसके विकास और सतत चुनौतियों का उल्लेख करती है।
प्रमुख चुनौतियाँ
- उप-क्षेत्रों में असमान रोजगार सृजन।
- नौकरियों में व्यापक अनौपचारिकता।
- उत्पादन वृद्धि की तुलना में नौकरी की गुणवत्ता में कमी।
- व्यापक जेंडर अंतराल, ग्रामीण-शहरी विभाजन और क्षेत्रीय असमानताएं।
तुलनात्मक विकास
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, रोजगार में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 1992 के 22.1% से बढ़कर 2022 में 31.0% हो गई, जो वैश्विक औसत से कम है।
2023-24 में क्षेत्रवार रोजगार
- कृषि: 292 मिलियन श्रमिकों के साथ सबसे बड़ा रोजगार देने वाला क्षेत्र।
- सेवाएँ: 188 मिलियन श्रमिकों के साथ दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता।
- उद्योग: 153 मिलियन श्रमिक कार्यरत हैं।
रोजगार संबंधी रुझान (2017-18 से 2023-24)
- ग्रामीण रोजगार में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 19.9% से घटकर 18.9% हो गयी।
- शहरी क्षेत्रों में सेवाओं का हिस्सा 59.1% से बढ़कर 60.8% हो गया।
- सेवाओं में पुरुषों की भागीदारी 32.8% से बढ़कर 34.9% हो गई।
- सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी 25.2% से घटकर 20.1% हो गयी।
- कृषि में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ता गया, तथा महिलाओं की हिस्सेदारी 57.0% से बढ़कर 64.4% हो गई।
लैंगिक असमानताएँ
- शहरी क्षेत्रों में 61% पुरुष और 60% महिलाएं सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं।
- ग्रामीण महिलाएं सेवा कार्यबल में केवल 10.5% हिस्सा रखती हैं।
- ग्रामीण पुरुषों का प्रतिनिधित्व 24% है।
सेवाओं में रोजगार के प्रकार
- आधे से अधिक सेवाकर्मी (96 मिलियन) नियमित वेतन या वेतनभोगी भूमिकाओं में हैं।
- 85 मिलियन श्रमिक (45%), आमतौर पर छोटे दुकानदार, ड्राइवर या स्वयं-खाता प्रदाता के रूप में स्व-नियोजित हैं।
आयु-संबंधी रोजगार रुझान
- युवा वर्ग (15-29 वर्ष) का नियमित वेतन वाले कार्यों में प्रतिनिधित्व कम है।
- बाधाओं में अपर्याप्त कौशल और स्कूल से काम तक संघर्षशील ट्रांजीशन शामिल हैं।
- 65 वर्ष की आयु के बाद वृद्ध श्रमिकों (45+) को नियमित वेतन वाली नौकरियों में भारी गिरावट देखने को मिलती है।
- वृद्धावस्था में केवल एक छोटा सा अंश ही स्वरोजगार में रह जाता है।