बाघ अभयारण्यों में पुनर्वास और सह-अस्तित्व के लिए नीतिगत ढांचा
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने एक नीतिगत ढांचा पेश किया है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि बाघ अभयारण्यों से वनवासी समुदायों का स्थानांतरण एक "असाधारण, स्वैच्छिक और साक्ष्य-आधारित उपाय" होना चाहिए।
नीति के प्रमुख घटक
- समुदाय-केंद्रित संरक्षण और पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय ढांचा (NFCCR):
- पर्यावरण और जनजातीय मामलों के मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से निर्धारित।
- प्रक्रियागत मानक, समयसीमा और जवाबदेही स्थापित करता है।
- संरक्षण-समुदाय इंटरफेस पर राष्ट्रीय डेटाबेस (NDCCI):
- स्थानांतरण, मुआवजा और स्थानांतरण के बाद की स्थिति पर नज़र रखता है।
- प्रासंगिक अधिनियमों और मानवाधिकार मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए वार्षिक स्वतंत्र ऑडिट।
- समुदायों के लिए विकल्प:
- वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत अपने व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों का प्रयोग करते हुए समुदाय "पारंपरिक वन आवासों" में रह सकते हैं।
- प्राधिकारियों को आधारभूत संरचना का विकास सुनिश्चित करना चाहिए तथा बाघ संरक्षण फाउंडेशन और पारिस्थितिकी विकास समितियों में ग्राम सभा के सदस्यों को शामिल करना चाहिए।
पृष्ठभूमि और हालिया घटनाक्रम
- यह नीति वन अधिकार अधिनियम, 2006 के गैर-कार्यान्वयन से संबंधित चिंताओं के कारण शुरू की गई थी।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा मुख्य बाघ आरक्षित क्षेत्रों में गांवों के स्थानांतरण को प्राथमिकता देने के निर्देश के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
- इन मुख्य क्षेत्रों में 591 गांव और 64,801 परिवार थे।
- जनवरी 2022 से 56 गांवों के 5,166 परिवारों को कई राज्यों में स्थानांतरित किया गया है।
स्थानांतरण प्रक्रिया और दिशानिर्देश
- स्थानांतरण स्वैच्छिक होना चाहिए और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुरूप होना चाहिए।
- स्थानांतरण के लिए सहमति किसी प्रलोभन या दबाव से मुक्त होनी चाहिए तथा स्वतंत्र नागरिक समाज संगठनों द्वारा इसे सुगम बनाया जाना चाहिए।
- जानकारी स्थानीय भाषाओं और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त प्रारूपों में प्रदान की जानी चाहिए।
कार्यान्वयन और निरीक्षण
- प्रत्येक टाइगर रिजर्व में एक अनुपालन एवं सुरक्षा अधिकारी मौजूद होना चाहिए।
- त्रिस्तरीय शिकायत निवारण तंत्र (जिला, राज्य, राष्ट्रीय) प्रस्तावित है।
- अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का प्रयोग गैरकानूनी बेदखली या प्रक्रियागत चूक के मामलों में किया जा सकता है।