ये निर्देश बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्षों से निपटने के लिए जारी किए गए हैं। पर्यावास क्षरण, अनियंत्रित पर्यटन, और बाघ गलियारों के विखंडन के कारण इन संघर्षों में वृद्धि हो रही है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों पर एक नजर
- टाइगर सफारी पर प्रतिबंध: सफारी केवल बफर क्षेत्रों में गैर-वन या निम्नीकृत वन भूमि पर ही अनुमत होगी।
- कोर क्षेत्रों या निर्दिष्ट बाघ गलियारों में कोई सफारी नहीं होगी।
- रात्रिकालीन पर्यटन: यह कोर/ महत्वपूर्ण बाघ पर्यावासों में प्रतिबंधित होगा।
- निषिद्ध गतिविधियां: बफर/ सीमावर्ती क्षेत्रों में निम्नलिखित गतिविधियां वर्जित होंगी-
- वाणिज्यिक खनन; प्रदूषणकारी उद्योग; प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएं; विदेशी प्रजातियों का प्रवेश; कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमान; व्यावसायिक रूप से जलाऊ लकड़ी काटना आदि।
- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZs): सभी टाइगर रिज़र्व्स में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के 2018 के दिशा-निर्देशों के अनुसार ESZs अधिसूचित करने होंगे।
- ध्यातव्य है कि राज्य सरकारों के आग्रह पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ESZs अधिसूचित किए जाते हैं।
- बाघ संरक्षण योजनाएं (TCPs): राज्यों को निर्धारित समय-सीमा के भीतर TCPs तैयार/ संशोधित करनी होंगी।
- कोर और बफर क्षेत्रों को छह महीनों के भीतर अधिसूचित करना होगा।
- प्राकृतिक आपदा का दर्जा: राज्य मानव-वन्यजीव संघर्षों को प्राकृतिक आपदा के रूप में मान्यता प्रदान करेंगे। इससे त्वरित राहत सुनिश्चित की जा सकेगी।
- क्षतिपूर्ति: मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिजनों को ₹10 लाख की एकसमान अनुग्रह राशि (ex-gratia) प्रदान की जाएगी।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन दिशा-निर्देशों का मसौदा: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) छह महीनों के भीतर यह मसौदा तैयार करेगा और इसे सभी राज्यों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
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