भाषा का महत्व और संरक्षण के प्रयास
भाषा पहचान, परंपराओं, विश्वासों, रीति-रिवाजों और भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह मानवीय विशिष्टता का अभिन्न अंग है, साँस लेने के समान, फिर भी अक्सर इसे हल्के में लिया जाता है। इसके विकास के लिए उचित पोषण आवश्यक है।
भाषाओं की मान्यता और उत्सव
- 4 अक्टूबर, 2024 को भारत में पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता दी गई, जिससे उनके बोलने वालों का गौरव और पहचान बढ़ेगी।
- महाराष्ट्र के अमरावती में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें अंतर-भाषा सहयोग, अनुवाद और साहित्यिक संसाधनों के प्रसार पर ध्यान केंद्रित किया गया।
कम इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं के लिए चुनौतियाँ
कम बोली जाने वाली भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है, खासकर पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में, जिससे स्वदेशी ज्ञान के नष्ट होने का खतरा है। आर्थिक व्यवहार्यता भाषा के अस्तित्व को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है, जिससे क्षेत्रीय भाषा बोलने वालों के लिए रोजगार के अवसर आवश्यक हो जाते हैं।
डिजिटल चुनौतियाँ और अवसर
- ऑनलाइन कुछ भाषाओं के प्रभुत्व के कारण कई सुविकसित भाषाओं के डिजिटल विलुप्त होने का खतरा है।
- इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए देश ऐप्स और सर्च इंजनों का स्थानीयकरण कर रहे हैं; भारतीय भाषाओं के लिए भी इसी तरह के उपाय किए जाने की आवश्यकता है।
- सम्मेलन में बहुभाषी अनुवाद ऐप 'भाषिणी' के उपयोग पर प्रकाश डाला गया, हालांकि इसे और विकसित करने की आवश्यकता है।
साहित्यिक और तकनीकी विचार
भाषा और साहित्य का अंतर्संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर तेज़ी से बदलते तकनीकी परिदृश्य में। पारंपरिक अभिव्यक्तियाँ विकसित हो रही हैं, और भाषा का दुरुपयोग सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है। AI से रचनात्मक अधिकारों को ख़तरा है, जैसा कि अनधिकृत एआई डेटा स्क्रैपिंग के ख़िलाफ़ रचनात्मक लोगों के विरोध प्रदर्शनों में देखा जा सकता है।
भविष्य की दिशाएं
भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के प्रयासों में युवा भाषाविदों और शोधकर्ताओं की भागीदारी आवश्यक है। भाषाओं के भविष्य के स्वास्थ्य और विकास के लिए उनकी भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता और असम के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक डॉ. कुलधर सैकिया, भाषा विकास में बहुविषयक भाषाई अनुसंधान और युवाओं की भागीदारी के महत्व पर जोर देते हैं।