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मध्यम आय वर्ग (Middle-Income Class)

10 Apr 2025
40 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, नई आयकर संरचना के तहत 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वालों को आयकर से छूट प्रदान की गई है। यह छूट भारत में मध्यम आय वर्ग को महत्वपूर्ण कर लाभ प्रदान करती है।

अन्य संबंधित तथ्य 

  • नई कर व्यवस्था के तहत शून्य कर स्लैब को 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये कर दिया गया है। इस परिवर्तन से वेतनभोगी करदाताओं को 75,000 रुपये की मानक कटौती के कारण 12.75 लाख रुपये तक का प्रभावी कर लाभ प्राप्त होगा।
  • मध्यम वर्ग के लिए इस कर राहत का उद्देश्य प्रयोज्य आय (Disposable incomes) में वृद्धि करना और उपभोक्ता खर्च को प्रोत्साहित करना है। इससे अंततः आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

मध्यम आय वर्ग (MIC) के बारे में

  • परिभाषा:
    • मध्यम आय वर्ग की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है, फिर भी उन्हें परिभाषित करने के लिए अलग-अलग पद्धतियों का इस्तेमाल किया जाता है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
      • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) उन लोगों को मध्यम-आय वर्ग समूह में शामिल करता है, जिनकी आय प्रतिदिन 10 से 100 अमेरिकी डॉलर के बीच है।
      • पीपल रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) के अनुसार, मध्यम वर्गीय परिवारों की वार्षिक आय 2020-21 की कीमतों के आधार पर ₹5 लाख से ₹30 लाख के बीच होती है।
    • इस प्रकार, मध्यम आय वर्ग को ऐसा सामाजिक-सांस्कृतिक समूह माना जा सकता है, जो अपेक्षाकृत आर्थिक रूप से सुरक्षित हैं तथा जिनके गरीबी या सुभेद्य स्थिति में पड़ने की संभावना कम होती है।
  • मध्यम आय वर्ग में उल्लेखनीय विविधताएं मौजूद हैं, इनमें निम्नलिखित को शामिल किया गया हैं-
    • निम्न मध्यम वर्ग: यह समूह आम तौर पर अपनी आय का अधिकांश हिस्सा निजी स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और गैर-आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं, जैसे कि वाहन और बुनियादी घरेलू उपकरणों पर खर्च करता है।
    • उच्च मध्यम वर्ग: उपर्युक्त खर्चों के अलावा, यह समूह विवेकाधीन वस्तुओं में भी निवेश करता है और उनके पास कंप्यूटर, एयर कंडीशनर जैसी विलासिता की संपत्तियां होने की भी संभावना होती है।

भारतीय मध्यम आय वर्ग का विकास

  • स्वतंत्रता-पूर्व: मध्यम आय वर्ग का प्रारंभिक स्वरूप मुख्य रूप से शिक्षित एवं उच्च जाति व अंग्रेजी बोलने वाले अभिजात वर्ग के एक छोटे समूह तक सीमित था। यह समूह ब्रिटिश औपनिवेशिक शिक्षा नीतियों से अस्तित्व में आया था।
  • उदारीकरण के बाद विस्तार: 1990 के दशक में हुए LPG (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण) सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव लाया। इन सुधारों के बाद, भारतीय बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खुल गया, जिससे सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) जैसे क्षेत्रों में नौकरियों की भरमार हो गई। खासकर शहरों में, इस वजह से मध्यम वर्ग बहुत तेजी से बढ़ा।
  • वर्तमान और भविष्य के अनुमान: PRICE के अनुसार, भारत में मध्यम वर्ग की जनसंख्या 2021 में 31% थी। इसके 2031 तक 38% और 2047 तक 60% तक पहुंचने का अनुमान है। 

मध्यम वर्ग की बदलती प्रकृति का अलग-अलग क्षेत्रकों पर प्रभाव

अर्थव्यवस्था

  • उपभोग को बढ़ावा देना: बढ़ती आय और मध्यम वर्ग का विस्तार भविष्य के उपभोग को नया आकार देगा। इससे वस्त्र, संचार, व्यक्तिगत देखभाल आदि पर अतिरिक्त उपभोग बढ़ेगा।
    • PRICE के अनुसार, मध्यम वर्ग और अमीर परिवार 2030-31 तक लगभग 2.7 ट्रिलियन डॉलर के वृद्धिशील उपभोग व्यय (Incremental consumption spend) को बढ़ावा देंगे।
  • एक नए बाजार का उदय: शहरी मध्यम आय वर्ग स्थानीय और वैश्विक कंपनियों के लिए एक विशाल बाजार एवं राजस्व स्रोत के रूप में कार्य करता है। इस कारण ये कंपनियां अपनी ब्रांडिंग के लिए इन बाजारों को प्रभावी ढंग से लक्षित कर अपनी नीतियां तैयार करती हैं।
    • मध्यम आय वर्ग स्टार्ट-अप्स और नई सेवाओं की मांग पैदा करके एक गतिशील उद्यमिता परिवेश को भी बढ़ावा देता है।
  • समावेशी विकास: एक मजबूत और समृद्ध मध्यम वर्ग शिक्षा एवं स्वास्थ्य में निवेश कर स्वस्थ समाज के विकास में अपना योगदान देता है। साथ ही, यह भ्रष्टाचार के प्रति असहिष्णु रहकर  समावेशी विकास की नींव रखता है।

शहरी अवसंरचना

  • टियर-II शहरों को आकर्षक बनाना: मध्यम वर्ग की बढ़ती समृद्धि और उच्च क्रय शक्ति से टियर-II एवं टियर-III शहरों में मांग बढ़ेगी। इससे वे निवेश और विकास के नए केंद्र बनेंगे।
  • उभरते विकास केंद्र: नए मध्यम आय वर्ग के कारण शहरों में कॉफी शॉप, शॉपिंग मॉल, विविध मनोरंजन केंद्रों आदि का उदय हो रहा है।
  • आवासीय सोसाइटियों का उदय: पहले, गेटेड आवासीय सोसाइटियों को मुख्य रूप से उच्च वर्गों के लिए पसंदीदा आवास मॉडल के रूप में देखा जाता था। हालांकि, मध्यम वर्ग के उदय ने इस प्रवृत्ति को टियर-II शहरों तक भी बढ़ा दिया है।

सामाजिक पहलू

  • बेहतर सामाजिक-आर्थिक परिणाम: विभिन्न शोधों से पता चला है कि मध्यम वर्ग की अधिक हिस्सेदारी बेहतर संस्थानों का निर्माण करती है। इससे बदले में बेहतर सामाजिक-आर्थिक परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देना: सामाजिक मूल्यों और आर्थिक संवृद्धि के बीच एक सकारात्मक संबंध पाया जाता है। जैसे-जैसे संपत्ति बढ़ती है, लोग लोकतांत्रिक सिद्धांतों को अपनाने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्त्व देने, धार्मिक प्रभाव को कम करने और पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की प्रवृत्ति दिखाते हैं।

भारत में मध्यम आय वर्ग के समक्ष मौजूद चुनौतियां

  • बढ़ती महंगाई: स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के निजीकरण ने गुणवत्तापूर्ण सेवाओं को महंगा कर दिया है। इससे मध्यम वर्ग की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ रहा है।
  • बेरोजगारी: बेरोजगारी का उच्च स्तर या अल्प-रोजगार वित्तीय असुरक्षा एवं स्थिर आय की कमी का कारण बनते हैं।
  • स्थिर वेतन वृद्धि: आर्थिक संवृद्धि के बावजूद मध्यम वर्ग के वेतन में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो रही है। इससे उनकी क्रय शक्ति प्रभावित हो रही है।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी खतरा: विशेष रूप से बैंकिंग, आईटी और विनिर्माण क्षेत्रकों में स्वचालित नौकरियों के कारण अनेक मध्यमवर्गीय पेशेवर बेरोजगार हो रहे हैं।
  • कराधान और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा: प्राथमिक करदाता समूह होने के बावजूद, मध्यम आय वर्ग को निम्न आय समूहों की तुलना में सीमित कर प्रोत्साहन और सामाजिक लाभ प्राप्त होते हैं।
  • ऋण का बोझ: जीवनशैली संबंधी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, मध्यम आय वर्ग अक्सर उपभोक्ता ऋण और क्रेडिट कार्ड ऋण का सहारा लेता है। इससे इस वर्ग की वित्तीय असुरक्षा बढ़ जाती है।
    • CareEdge की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में, भारत का घरेलू ऋण GDP के 38% तक पहुंच गया था। यह हाउसहोल्ड लिवरेज में बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।
      • हाउसहोल्ड लिवरेज: इसका अर्थ उस सीमा से है, जिस तक परिवार अपने व्यय और निवेश के वित्त-पोषण के लिए ऋण का उपयोग करते हैं। इसे प्रायः कुल घरेलू ऋण और प्रयोज्य आय (Disposable income) के बीच अनुपात से मापा जाता है।
  • सामाजिक संरचनाएं: पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण अक्सर पेशेवर परिस्थितियों में मध्यम वर्ग की महिलाओं को प्रभावित करता है तथा उनके करियर के विकास को सीमित करता है।

भारत में मध्यम वर्ग की उपेक्षा के लिए जिम्मेदार कारक

  • आत्मनिर्भर विशेषता: यह एक गलत धारणा है कि मध्यम वर्ग आत्मनिर्भर है और उसे सरकारी सहायता की आवश्यकता नहीं है, जबकि वह अप्रत्यक्ष करों, मुद्रास्फीति आदि के बढ़ते दबाव का सामना कर रहा है।
  • विषम संरचना: इस वर्ग में सार्वजनिक क्षेत्रक के कर्मचारी, बढ़ई जैसे असंगठित कामगार, गिग वर्कर्स आदि भी शामिल हैं। इससे उनके लिए कोई विशेष प्रोत्साहन तैयार करना मुश्किल हो जाता है।
    • मध्यम वर्ग आमतौर पर दबाव समूह के रूप में संगठित नहीं होता है और विचारधारा से कम प्रेरित होता है। यहां तक कि मध्यम वर्ग से उभरने वाले राजनीतिक नेताओं का भी उन पर ध्यान केंद्रित नहीं होता है।
  • निम्न राजनीतिक भागीदारी: मध्यम वर्ग में कम मतदान प्रतिशत उनके राजनीतिक और आर्थिक रूप से अनदेखा किए जाने का एक प्राथमिक कारण है।
  • नीति-निर्माण में सीमित प्रतिनिधित्व: नीति-निर्माण निकायों में मध्यम वर्ग की चिंताओं को कम प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि ये संस्थाएं आमतौर पर व्यापारिक समूहों या ग्रामीण-आधारित एजेंडे से प्रभावित होती हैं।

निष्कर्ष

मध्यम वर्ग को सशक्त बनाने के लिए एक बहुआयामी एप्रोच अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें कर लाभ, किफायती आवास और मजबूत श्रम बाजार नीतियां शामिल हों। उनकी सुभेद्यताओं को दूर करने, वित्तीय सुरक्षा बढ़ाने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक व हितधारक-संचालित कार्य योजना आवश्यक है। इससे अर्थव्यवस्था और समाज में उनका निरंतर योगदान सुनिश्चित हो सकेगा।

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