‘अंतरराष्ट्रीय क्रायोस्फीयर जलवायु पहल’ ने “स्टेट ऑफ द क्रायोस्फीयर रिपोर्ट 2025” जारी की है | Current Affairs | Vision IAS
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    ‘अंतरराष्ट्रीय क्रायोस्फीयर जलवायु पहल’ ने “स्टेट ऑफ द क्रायोस्फीयर रिपोर्ट 2025” जारी की है

    Posted 12 Nov 2025

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    Article Summary

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    रिपोर्ट में तेजी से हो रही बर्फ की हानि, समुद्री बर्फ में गिरावट और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने पर प्रकाश डाला गया है, जिससे वैश्विक समुद्र स्तर, जलवायु विनियमन और दुनिया भर में पारिस्थितिक और मानव प्रणालियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है।

    इस रिपोर्ट में क्रायोस्फीयर यानी हिमांक-मंडल के पांच प्रमुख घटकों में हो रहे परिवर्तनों की स्थिति और प्रभावों को उजागर किया गया है। ये पांच प्रमुख घटक हैं; बर्फ की चादरें, पर्वतीय हिमनद और हिमपात, ध्रुवीय महासागर, समुद्री बर्फ तथा स्थायी तुषार भूमि (पर्माफ्रॉस्ट)। 

    रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर 

    • बर्फ की चादरें (Ice Sheets): ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों से बर्फ का कम होना 1990 के दशक की तुलना में चार गुना बढ़ गया है।
      • प्रभाव: इससे समुद्री जल-स्तर बढ़ा है। समुद्री जल-स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में अवसंरचना, कृषि भूमि, मकानों और आजीविका को व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंच रहा है। 
    • ध्रुवीय महासागर (Polar Oceans): ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ने से ऊष्मा और कार्बन अवशोषित करने की ध्रुवीय महासागरों की क्षमता कम हो रही है तथा वैश्विक महासागरीय जल-धाराओं के परिसंचरण में इनकी भूमिका प्रभावित हो रही है। 
      • प्रभाव: अंटार्कटिक ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AOC) और अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) जैसी दो प्रमुख महासागरीय जलधाराएं, ठोस ताजा-जल (हिमनद या बर्फ) के पिघलकर महासागर में मिलने से काफी धीमी हो गई हैं।  
    • पर्वतीय हिमनद और हिम (Mountain Glaciers and Snow): वर्ष 2000 से 2023 के बीच विश्व-भर में हिमनदों से प्रतिवर्ष लगभग 273 गीगाटन बर्फ पिघल गई हैं। यह  हिमनदों के बर्फ की तीव्र गति से पिघलने का संकेत है।  
      • प्रभाव: यह स्थिति अरबों लोगों के लिए जल, भोजन, आर्थिक और राजनीतिक सुरक्षा के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर रही है।
    • समुद्री बर्फ (Sea Ice): 1979 से अब तक, आर्कटिक और अंटार्कटिक, दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्री बर्फ का विस्तार और मोटाई 40–60% तक कम हो गई है।
      • प्रभाव: समुद्री बर्फ कम होने से निम्नलिखित प्रभाव सामने आ रहे हैं:
        • आर्कटिक क्षेत्र का तापमान विश्व के अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है, 
        • बर्फ पर निर्भर प्रजातियों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है,
        • मौसम और महासागरीय जल-धाराओं में परिवर्तन हो रहे हैं, तथा 
        • समुद्री जल-स्तर में वृद्धि से जुड़े खतरे बढ़ रहे हैं।
    • स्थायी तुषार भूमि (Permafrost): वर्तमान तापवृद्धि की शुरुआत से प्रत्येक दशक में लगभग 2,10,000 वर्ग किलोमीटर परमाफ़्रॉस्ट पिघल चुका है।
      • प्रभाव: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से इनमें वर्षों से जमा जैविक कार्बन का वायुमंडल में उत्सर्जन हो रहा है जिससे इनकी मात्रा बढ़ रही है। इससे वैश्विक कार्बन संतुलन (Carbon budget) पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
        • गौरतलब है कि पर्माफ्रॉस्ट में वायुमंडल की तुलना में तीन गुना अधिक कार्बन जमा है।
    • Tags :
    • International Cryosphere Climate Initiative
    • State of Cryosphere Report 2025
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