अधिग्रहण वित्तपोषण पर RBI का प्रस्ताव
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों के अधिग्रहण वित्तपोषण जोखिम को उनकी टियर-I पूंजी के 10 प्रतिशत तक सीमित करने का प्रस्ताव दिया है। बैंकरों को यह प्रतिबंधात्मक लगता है और वे इस सीमा का विस्तार करते हुए इसमें इक्विटी और अन्य पूंजीगत साधनों जैसे कि अधिमान्य शेयर और परिवर्तनीय प्रतिभूतियों को भी शामिल करने का सुझाव देते हैं।
प्रस्ताव के प्रमुख तत्व
- बैंक वित्तपोषण: बैंक घरेलू या विदेशी कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने वाली भारतीय कंपनियों को वित्तपोषित कर सकते हैं, यदि निवेश से अल्पकालिक वित्तीय पुनर्गठन के बजाय दीर्घकालिक रणनीतिक मूल्य का सृजन होता है।
- वित्तपोषण संरचना: बैंक अधिग्रहण लागत का 70 प्रतिशत तक वित्तपोषण कर सकते हैं, जिसमें अधिग्रहण करने वाली फर्म इक्विटी के माध्यम से 30 प्रतिशत का योगदान देगी।
- अधिग्रहणकर्ता मानदंड: अधिग्रहण करने वाली कंपनी एक सूचीबद्ध इकाई होनी चाहिए, जिसका निवल मूल्य संतोषजनक हो तथा जिसकी लाभप्रदता कम से कम तीन वर्ष की हो।
- एक्सपोजर कैप: इस तरह के वित्तपोषण के लिए बैंक का कुल एक्सपोजर उसकी टियर-I पूंजी के 10 प्रतिशत पर सीमित है।
चिंताएँ और सुझाव
- बैंकरों ने जोखिम सीमा को टियर-I पूंजी के 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का सुझाव दिया है।
- विशेषज्ञ ऋण जोखिम-अंडरराइटिंग चुनौतियों और परिसंपत्ति-देयता असंतुलन जैसे जोखिमों पर प्रकाश डालते हैं।
- बैंकों को आंतरिक ढांचे और ऋण हामीदारी क्षमताओं को मजबूत करना चाहिए।
अवसर और बाजार प्रभाव
- आरबीआई का ढांचा सालाना 10-15 बिलियन डॉलर का नया बाजार खोल सकता है।
- भारत में विलय एवं अधिग्रहण (M&A) की मात्रा में मजबूत वृद्धि देखी गई है, तथा इस वर्ष सौदे 50 बिलियन डॉलर से अधिक होने की संभावना है।
- यह प्रस्ताव बैंकों को जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए रणनीतिक मूल्य सृजन में भाग लेने की अनुमति देता है।
दीर्घकालिक विचार
- भविष्य में RBI मजबूत प्रशासन और जोखिम नियंत्रण वाले बैंकों के लिए जोखिम सीमा को समायोजित कर सकता है।
- यह प्रस्ताव मध्य-बाज़ार पारिस्थितिकी तंत्र को समर्थन देने और सतत विकास को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।