वोडाफोन के लिए AGR बकाया पर सुप्रीम कोर्ट का पुनर्विचार
वोडाफोन के समायोजित सकल राजस्व (AGR) बकाया पर पुनर्विचार की अनुमति देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य भारत संघ बनाम एसोसिएशन ऑफ यूनाइटेड टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया मामले में अक्टूबर 2019 के फैसले से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना है।
दूरसंचार लाइसेंसिंग और AGR की पृष्ठभूमि
- जब 1994 में दूरसंचार क्षेत्र निजी ऑपरेटरों के लिए खोला गया, तो एक निश्चित लाइसेंस शुल्क की आवश्यकता थी।
- 1999 की नई दूरसंचार नीति ने राजस्व-साझाकरण मॉडल प्रस्तुत किया, जिसने इस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- "सकल राजस्व" की परिभाषा व्यापक थी, जिसमें ब्याज और लाभांश भी शामिल थे।
- AGR ने सेवा कर और बिक्री कर जैसी कुछ मदों को छोड़कर सकल राजस्व को समायोजित किया।
AGR गणना पर विवाद
- दूरसंचार ऑपरेटरों को मूलतः AGR का 15% लाइसेंस शुल्क के रूप में साझा करना होता था, जिसे बाद में घटाकर 8% कर दिया गया।
- एक प्रमुख मुद्दा यह था कि क्या AGR में काल्पनिक राजस्व शामिल किया जाना चाहिए या केवल वास्तविक राजस्व।
- दूरसंचार ऑपरेटर अक्सर छूट की पेशकश करते थे, जिससे वास्तविक राजस्व के आंकड़े प्रभावित होते थे।
- दूरसंचार विभाग ने रियायती मूल्य पर नहीं, बल्कि अधिकतम खुदरा मूल्य पर 8% शुल्क लेने पर जोर दिया।
न्यायायिक निर्णय
- प्रारंभ में, दूरसंचार विवाद निपटान अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) ने AGR के रूप में वास्तविक राजस्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए दूरसंचार ऑपरेटरों के पक्ष में फैसला सुनाया।
- 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया, जिससे दूरसंचार कंपनियों पर भारी वित्तीय देनदारी आ गई।
- न्यायालय की व्याख्या के अनुसार दूरसंचार कम्पनियों को वास्तविक आय के आधार पर नहीं, बल्कि प्रकाशित टैरिफ के आधार पर भुगतान करना होगा।
वित्तीय निहितार्थ
- सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के परिणामस्वरूप लाइसेंस शुल्क के रूप में 23,000 करोड़ रुपये की देनदारी उत्पन्न हुई।
- अतिरिक्त शुल्कों में जुर्माना और ब्याज शामिल थे, जिससे कुल मांग 93,000 करोड़ रुपये हो गई, जिसमें 70,000 करोड़ रुपये संचित ब्याज और जुर्माना के रूप में थे।
- जुर्माने की शर्तें कठोर थीं, जिनमें चक्रवृद्धि मासिक ब्याज दर और अतिरिक्त दंड शामिल थे।
पुनर्विचार की आवश्यकता और नीतिगत निहितार्थ
- सर्वोच्च न्यायालय के हालिया पुनर्विचार से इन वित्तीय बोझों को दूर करने का अवसर मिलता है।
- पिछले निर्णयों में न्यायालय ने आर्थिक प्रभावों पर विचार करने तथा केवल जानबूझकर किए गए वैधानिक उल्लंघनों पर ही जुर्माना लगाने पर जोर दिया था।
- यह निर्णय दूरसंचार ऑपरेटरों पर वित्तीय दबाव को कम कर सकता है तथा एक निष्पक्ष कानूनी और नियामक ढांचे के महत्व को उजागर कर सकता है।