सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय मंज़ूरी संबंधी निर्णय को वापस लिया जाना
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मई 2025 के अपने फैसले को वापस लेना देश के पर्यावरण विनियमन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह निर्णय संभावित रूप से पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) की अनुमति देता है और पूर्व के उन निर्णयों से अलग है जिनमें पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी को अनिवार्य बताया गया था।
प्रमुख चिंताएँ
- संवैधानिक आधार:
स्वच्छ वायु और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जिस पर स्वयं न्यायालय ने भी ज़ोर दिया है। पूर्वव्यापी मंज़ूरी, एहतियाती सिद्धांत को कमज़ोर करके इसे चुनौती देती है। - कानूनी ढांचा:
- 2006 की ईआईए अधिसूचना पूर्व पर्यावरणीय स्वीकृति को अनिवार्य बनाती है, जिससे पूर्वव्यापी अनुमोदन कानूनी रूप से संदिग्ध हो जाता है।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2024 में 500 से अधिक मंजूरियां प्रदान कीं, जिससे कठोर पर्यावरणीय जांच की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
- न्यायिक असहमति:
न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने कहा कि कार्योत्तर मंजूरी पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता वाले कानून के विपरीत है और विध्वंस से संभावित प्रदूषण गैर-अनुपालन को उचित नहीं ठहराता है।
आगे की राह
- पूर्व EC का प्रवर्तन:
प्रभावी पर्यावरणीय विनियमन के लिए परियोजनाएं शुरू करने से पहले ईसी प्राप्त करने का सख्त अनुपालन महत्वपूर्ण है। - प्रशासनिक सुधार:
- EC प्रसंस्करण में तेजी लाने के लिए PARIVESH जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करें।
- देरी को रोकने के लिए सार्वजनिक सुनवाई और विशेषज्ञ मूल्यांकन समितियों को बढ़ावा दें।
- पारदर्शिता और निगरानी:
वास्तविक समय पर निगरानी और परियोजना विवरणों के अनिवार्य सार्वजनिक प्रकटीकरण पर ध्यान केंद्रित करके पारदर्शिता में सुधार करें। - उल्लंघनकर्ताओं के लिए दंड:
भविष्य में उल्लंघनों को रोकने और पारिस्थितिक क्षति की भरपाई के लिए "प्रदूषणकर्ता भुगतान करता है" सिद्धांत के तहत दंड लागू करें।
चल रही सुनवाई से पर्यावरण संरक्षण के महत्व की पुनः पुष्टि की उम्मीद जगी है, साथ ही सतत विकास सुनिश्चित करने की भी उम्मीद जगी है, जो नागरिकों के अधिकारों और भारत के पर्यावरणीय भविष्य का सम्मान करता है।