भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता
पिछले एक दशक (2015-नवंबर 2025) में, किसी भी प्रमुख भारतीय शहर ने सुरक्षित वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) स्तर हासिल नहीं किया है। अध्ययन में 11 भारतीय शहरों पर ध्यान केंद्रित किया गया और वायु प्रदूषण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला गया।
मुख्य निष्कर्ष
- नई दिल्ली सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों में से एक है, जहां 2025 तक वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगभग 180 रहेगा, जिससे यह दशक भर में सबसे प्रदूषित शहर बन जाएगा।
- मौसम संबंधी और भौगोलिक कारकों के कारण, विशेष रूप से सिंधु-गंगा क्षेत्र में, सर्दियों में धुंध लगातार बनी रहती है।
- कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़ और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में AQI का स्तर मध्यम, फिर भी असुरक्षित रहा है।
- महानगरों में बेंगलुरु की हवा सबसे स्वच्छ थी, लेकिन इसका AQI अभी भी 'अच्छी' श्रेणी से ऊपर था।
क्षेत्रीय अवलोकन
- उत्तर और पश्चिम भारत में लखनऊ, वाराणसी और अहमदाबाद जैसे शहरों में लगातार उच्च एवं अस्वास्थ्यकर AQI स्तर देखने को मिला।
- खेतों में आग लगने की घटनाओं में कमी से दिल्ली की वायु गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ, जिससे पता चलता है कि स्थानीय प्रदूषण स्रोत और मौसम विज्ञान, भीषण शीत ऋतु में धुंध के प्राथमिक कारक हैं।
अध्ययन अंतर्दृष्टि
- अक्टूबर में पर्याप्त वर्षा न होने तथा कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के कारण प्राकृतिक प्रदूषक तत्वों के नष्ट होने से प्रारंभिक धुंध का निर्माण बढ़ गया।
- भारत में वायु प्रदूषण को शहरीकरण, यातायात, उद्योग और मौसमी कारकों के कारण एक राष्ट्रीय, सतत और संरचनात्मक समस्या के रूप में वर्णित किया गया है।
सिफारिशों
- वायु प्रदूषण से निपटने के लिए व्यवस्थित और विज्ञान आधारित नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है।
- हाल के नीतिगत हस्तक्षेपों और तकनीकी सुधारों के बावजूद, भारतीय शहरों को अभी भी वायु गुणवत्ता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- अधिक आक्रामक प्रदूषण नियंत्रण रणनीतियाँ, निरंतर प्रवर्तन उपाय और दीर्घकालिक शहरी नियोजन सुधार आवश्यक हैं।