माओवादी आंदोलन और शासन संबंधी चुनौतियाँ
भारत में माओवादी आंदोलन का उद्भव और विकास मुख्य रूप से अल्पविकास और सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं से जुड़ा रहा है, जिसमें अक्सर शासन के महत्वपूर्ण पहलू की उपेक्षा की जाती रही है। यह आंदोलन, विशेष रूप से पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में सक्रिय है, जो शासन की महत्वपूर्ण विफलताओं को रेखांकित करता है।
ऐतिहासिक संदर्भ और शासन की विफलताएँ
- संवैधानिक ढाँचा: पांचवीं अनुसूची एक ऐसा कानूनी ढाँचा प्रदान करती है जिसका उद्देश्य जनजातीय आबादी की रक्षा करना है। इसमें जनजातीय सलाहकार परिषद (Tribal Advisory Council) और विशेष वित्तीय योजनाओं जैसे प्रावधान शामिल हैं।
- शोषण और उपेक्षा: इन उपायों के बावजूद, जनजातीय आबादी को गंभीर भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ा है, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति निम्न बनी हुई है।
- योजना आयोग की रिपोर्ट (2008): विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट ने रेखांकित किया कि प्रचुर संसाधनों के बावजूद इस क्षेत्र की गरीबी का मुख्य कारण खराब शासन और राज्य की उपेक्षा है।
कानूनी सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- मनमाने ढंग से भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कानूनी सुरक्षा उपाय अप्रभावी रहे, जिससे आदिवासियों के बीच बड़े पैमाने पर भूमि विस्थापन हुआ।
- PESA अधिनियम, 1996: पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA) का उद्देश्य आदिवासी प्रतिनिधित्व और स्व-शासन में सुधार करना था, लेकिन इसके प्रावधानों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हुआ।
शासन व्यवस्था की कमियों का प्रभाव
- शासन की कमियों ने माओवादी विचारधारा के प्रसार को सुगम बनाया, क्योंकि उन्होंने "जल, जंगल और जमीन" जैसे नारों के तहत भूमि और संसाधनों के स्वामित्व का वादा करने वाली वैकल्पिक शासन संरचनाएँ प्रदान कीं।
- माओवादियों ने समानांतर सरकारें स्थापित कीं जो महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती थीं, जिससे उन्हें स्थानीय समर्थन प्राप्त हुआ।
वर्तमान घटनाक्रम और सिफारिशें
- डिजिटल प्रौद्योगिकी और नकद हस्तांतरण के माध्यम से कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है, लेकिन न्याय और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाएं अभी भी अपर्याप्त हैं।
- वन अधिकार अधिनियम (FRA) और PESA जैसे कानूनों को उनकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए मजबूत राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है।
- प्रतिपूरक वनीकरण कोष (CAF) अधिनियम, 2016 ने कानूनी सुरक्षा उपायों को कमजोर कर दिया है और वनवासियों की आजीविका को प्रभावित किया है।
भविष्य की शासन व्यवस्था की परिकल्पना
- आदिवासी प्रतिनिधित्व की कमी को दूर करना और स्थानीय शासन निकायों को सशक्त बनाना आवश्यक है।
- छठी अनुसूची के उन क्षेत्रों से प्राप्त सीख, जिनका शासन स्वायत्त जिलों/क्षेत्रीय परिषदों द्वारा किया जाता है, एक नए शासन चार्टर के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकती है।
लेख का निष्कर्ष यह है कि माओवादी शासन के विरोधाभासों को दूर करना और माओवादी प्रभाव के बाद के क्षेत्रों में आदिवासियों के राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाना सतत विकास और शांति के लिए महत्वपूर्ण है।