भारत का प्रवासी श्रमिक एवं विदेश आवागमन (सुविधा एवं कल्याण) विधेयक, 2025
यह लेख भारत के श्रम प्रवासियों की दुर्दशा पर चर्चा करता है, जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और केरल से हैं। ये प्रवासी विदेशों में निर्माण श्रमिकों, घरेलू सहायकों और कारखाना श्रमिकों के रूप में खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं और प्रेषण के माध्यम से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
विदेश आवागमन विधेयक, 2025 से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- विनियमन में ढील से संबंधित चिंताएँ:
- यह विधेयक 1983 के प्रवासन अधिनियम को प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है, लेकिन प्रवासी अधिकारों के बजाय नौकरशाही दक्षता को प्राथमिकता देने के लिए इसकी आलोचना की जा रही है।
- यह उन लागू करने योग्य अधिकारों को हटा देता है जो पहले प्रवासियों को दुर्व्यवहार के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति देते थे।
- प्रवासियों की संवेदनशीलता:
- यह विधेयक मानव तस्करी और यौन हिंसा जैसी लिंग-विशिष्ट चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान करने में विफल रहता है, जो मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करती हैं।
- यह महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए दंड को कम करता है।
- मानव तस्करी और शोषण:
- इस विधेयक में मानव तस्करी से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उपायों का अभाव है।
- इससे भर्ती एजेंसियों के लिए फीस का खुलासा करने की अनिवार्यता समाप्त हो जाती है, जिससे कर्ज के बंधन में फंसने का खतरा बढ़ जाता है।
- अपर्याप्त समर्थन और निगरानी:
- इस विधेयक में आव्रजन जांच चौकियों को डिजिटल प्रणालियों से बदलने का प्रावधान है, जिससे शोषण का खतरा बढ़ सकता है।
- विवाद समाधान और दस्तावेज़ नवीनीकरण जैसी सहायता की ज़िम्मेदारी अब कम संसाधनों वाले सरकारी निकायों पर स्थानांतरित हो गई है।
- निगरानी और डेटा संबंधी चिंताएँ:
- एकीकृत सूचना प्रणाली की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि इसमें प्रवासी डेटा के दुरुपयोग की संभावना है।
- स्थानीय प्रतिनिधित्व और समर्थन का अभाव:
- सत्ता के केंद्रीकरण से राज्य सरकारें और स्थानीय समितियां निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से बाहर हो जाती हैं।
- पुनर्एकीकरण की चुनौतियाँ:
- यह विधेयक प्रवासियों के पुनर्एकीकरण के मुद्दे को अपर्याप्त रूप से संबोधित करता है और इसमें उन लोगों को शामिल नहीं किया गया है जिन्हें 182 दिनों के भीतर निर्वासित किया गया है।
नीतिगत सुधारों के लिए सिफारिशें
- प्रवासियों के लिए 'स्व-वकालत अधिकारों' (Self-advocacy rights) को बहाल किया जाए।
- भर्ती एजेंसियों के लिए शुल्क पारदर्शिता अनिवार्य करें।
- गंतव्य स्थान पर पहुँचने के बाद सुरक्षा उपायों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
- राज्यों और नागरिक समाज को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने के लिए शासन व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करें।
- तस्करी और शोषण के लिए दंड में वृद्धि करना।
- "कार्य" की परिभाषा का विस्तार करें ताकि उसमें गिग इकोनॉमी की नौकरियां भी शामिल हो सकें।
- वापस लौटने वाले प्रवासियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और आघात परामर्श हेतु धन उपलब्ध कराएं।
यह लेख इस बात पर बल देता है कि 2025 के विधेयक को न केवल प्रवासन की सुविधा प्रदान करनी चाहिए, बल्कि उन श्रमिकों के लिए सुरक्षा को सुदृढ़ करना चाहिए जो घरेलू और विदेशी दोनों स्तरों पर भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य हैं।