केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने खाद्य तेल विनियमों में संशोधनों को अधिसूचित किया | Current Affairs | Vision IAS
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यह अधिसूचना आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत जारी वनस्पति तेल उत्पादों का उत्पादन और उपलब्धता (विनियमन) आदेश, 2011 में संशोधन करेगी।  

  • इन संशोधनों का उद्देश्य भारत के खाद्य तेल उद्योग में पारदर्शिता बढ़ाना, आपूर्ति में व्यवधान को रोकना और उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित करना है। साथ ही, जवाबदेही तय करना और खाद्य तेल की आपूर्ति में निरंतरता बनाए रखना भी है।  

भारत में खाद्य तेल की स्थिति

  • भारत खाद्य तेल की अपनी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। यह विश्व में वनस्पति तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश है, इसके बाद चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान है।
    • भारत में खाद्य तेल के आयात में पाम ऑयल का हिस्सा सर्वाधिक 59% है। इसके बाद सोयाबीन तेल (23%) और सूरजमुखी तेल (16%) का स्थान है।
    • भारत में खाद्य तेल आयात पर निर्भरता 2015-16 में 63.2% थी। यह 2021-22 में घटकर 54.9% रह गई।  
  • भारत में 9 प्रमुख खाद्य तेल फसलें हैं: मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, रामतिल (नाइजरसीड), अरंडी और अलसी।
  • उपर्युक्त 9 प्रमुख तिलहन फसलों में से सोयाबीन (34%), रेपसीड-सरसों (31%) और मूंगफली (27%) देश में कुल तिलहन उत्पादन में 92% से अधिक योगदान करती हैं।  

खाद्य तेलों के आयात पर अधिक निर्भरता के लिए जिम्मेदार कारक

  • भारत में लगभग 72% तिलहन उत्पादन क्षेत्र सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है। इनकी खेती मुख्य रूप से सीमांत एवं लघु किसान करते हैं।
  • खेती में नई तकनीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाना, संसाधनों की कमी आदि के कारण  भी भारत में तिलहन की उत्पादकता कम है। 

भारत में घरेलू खाद्य तेल उत्पादन के लिए की शुरू की गई पहलें

  • राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- ऑयल पाम (NMEO-OP): इसका उद्देश्य देश में ही तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देना और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- तिलहन और ऑयल पाम (NFSM-OS&OP): इसका उद्देश्य निम्नलिखित तरीकों से खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाना है:
    • 9 तिलहनी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करना; 
    • ऑयल पाम और वृक्षों से प्राप्त तिलहनों के उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाना आदि। 
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