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अमेरिकी आधिपत्य के एक उपकरण के रूप में आर्थिक प्रतिबंध | Current Affairs | Vision IAS
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अमेरिकी आधिपत्य के एक उपकरण के रूप में आर्थिक प्रतिबंध

Posted 11 Aug 2025

Updated 12 Aug 2025

1 min read

RBI के पूर्व गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल के एक शोध-पत्र के अनुसार, भू-राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आर्थिक दबाव का उपयोग करना संयुक्त राज्य अमेरिका की एक पुरानी नीति रही है, जो राष्ट्रपति ट्रंप के काल में और भी बढ़ गई है।

  • कई वर्षों से, अमेरिका ने वेनेजुएला, ईरान, इराक, लीबिया, सूडान और सीरिया से तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाए हैं।

शोध-पत्र के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • आर्थिक युद्ध के रूप में प्रतिबंध: व्यापार, शिपिंग, बैंकिंग और भुगतान माध्यमों पर आर्थिक प्रतिबंध, कूटनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सैन्य युद्ध का एक बेहतर विकल्प हैं।
  • संख्या में वृद्धि, पर प्रभाव सीमित: 21वीं सदी में प्रतिबंधों की संख्या बढ़ने के बावजूद, ये प्रतिबंध कूटनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने में ज्यादातर असफल रहे हैं।
    • वर्ष 2000 के बाद लगाए गए 687 प्रतिबंधों में से 20% से भी कम पूरी तरह सफल हुए हैं।
  • द्वितीयक प्रतिबंधों का उदय: ये राज्यक्षेत्रातीत (Extraterritorial) होते हैं। इनका उद्देश्य उन तीसरे देशों की आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगाना होता है, जो प्रत्यक्ष रूप से प्राथमिक प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं कर रहे होते हैं।
    • अमेरिका और उसके सहयोगी (G-7, EU आदि) इन द्वितीयक प्रतिबंधों का उपयोग प्रतिबंधित देशों के साथ तीसरे पक्ष के व्यापार को रोकने के लिए करते हैं।
    • प्रमुख उदाहरण:
      • चाबहार बंदरगाह (ईरान): अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारतीय निवेश प्रभावित हुआ।
      • रूस में तेल संबंधी निवेश: अमेरिकी/ यूरोपीय संघ के भुगतान प्रतिबंधों के कारण भारतीय सरकारी कंपनियां 900 मिलियन डॉलर का लाभांश प्राप्त नहीं कर पा रही हैं।

भारत के लिए सुझाव: भारत को ब्रिक्स (BRICS) और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) के जरिये उभरती अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना को "जोखिम कम करने वाले उपाय" तथा लगातार बढ़ते प्रतिबंधों की व्यवस्था के खिलाफ एक तर्कसंगत प्रतिक्रिया के रूप में देखना चाहिए।

  • Tags :
  • US Hegemony
  • Economic coercion
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