इस विधेयक के उद्देश्य भारत के खनिज क्षेत्रक को मजबूत करना, महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करना तथा राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन के साथ तालमेल सुनिश्चित करना है। इससे वैश्विक व्यवधानों से निपटा जा सकेगा और आयात पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा।
मुख्य संशोधनों पर एक नजर
- राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण एवं विकास ट्रस्ट (NMEDT): राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट का नाम बदलकर NMEDT कर दिया गया है। साथ ही, इसका उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों (Critical minerals) के लिए अपतटीय एवं अंतर्राष्ट्रीय अन्वेषण को शामिल करना है।
- NMEDT को वित्त-पोषित करने के लिए खनन पट्टाधारकों द्वारा देय रॉयल्टी को 2% से बढ़ाकर 3% किया जाएगा।
- "मिनरल एक्सचेंज” की स्थापना: ये खनिजों, कंसन्ट्रेट और धातुओं सहित संसाधित स्वरूपों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स होंगे।
- इन एक्सचेंजों का लक्ष्य मूल्य निर्धारण के लिए एक पारदर्शी और सक्षम बाजार बनाना है।
- महत्वपूर्ण खनिज के खनन को प्रोत्साहित करना: यह विधेयक मौजूदा खनन पट्टों में नए खनिजों को शामिल करना सरल बनाता है।
- सातवीं अनुसूची या प्रथम अनुसूची के भाग D में सूचीबद्ध महत्वपूर्ण खनिजों को यदि मौजूदा पट्टे में शामिल किया जाता है, तो इसके लिए किसी अतिरिक्त रॉयल्टी का भुगतान नहीं किया जाएगा।
- खनन पट्टा क्षेत्रों के एक बार विस्तार की अनुमति: यह गहराई में मौजूद खनिजों (200 मीटर से नीचे) के लिए 10% तक समग्र लाइसेंस के लिए 30% तक बढ़ाया जा सकेगा।
- कैप्टिव माइंस से बिक्री की सीमा हटाना: कैप्टिव माइंस से खनिज बिक्री पर 50 प्रतिशत की सीमा हटा दी गई है।
- कैप्टिव माइंस किसी कंपनी के स्वामित्व वाली खदान होती है, जिसका परिचालन कंपनी अपने स्वयं के उपयोग के लिए करती है।
- राज्य सरकारें पुराने खनिज के ढेर (Old mineral dumps) की बिक्री की अनुमति भी दे सकेंगी।