चीन की सरकार ने चीन से प्राप्त दुर्लभ भू-खनिजों के निर्यात के लिए सरकारी लाइसेंस अनिवार्य कर दिया है। साथ ही, बिना सरकारी अनुमोदन के दुर्लभ भू-खनिजों के निष्कर्षण के लिए तकनीकों, चुंबक निर्माण और सैन्य-संबंधी निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
- इन प्रतिबंधों का प्रभाव एडवांस्ड चिप्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से जुड़े अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर पड़ सकता है, जिनका संभावित सैन्य उपयोग हो सकता है। इसके अलावा, इनसे आपूर्ति श्रृंखलाएं भी बाधित हो सकती हैं।
दुर्लभ भू-खनिजों (Rare Earth Elements - REEs) के बारे में
- दुर्लभ भू-खनिजों में 17 खनिज शामिल होते हैं। इनमें 15 लैंथेनाइड तथा स्कैण्डियम (Scandium) और यट्रियम (Yttrium) शामिल हैं।
- ये खनिज लोहित-धूसर रंग से लेकर चांदी जैसे चमकीले होते हैं और सामान्यतः नरम, आकार बदलने योग्य (malleable), लचीले (ductile) तथा रासायनिक रूप से अभिक्रियाशील होते हैं।
- अपने नाम के विपरीत, ये खनिज प्रकृति में बहुत दुर्लभ नहीं हैं, बल्कि मध्यम मात्रा में पाए जाते हैं।
- महत्त्व: दुर्लभ भू-खनिज हाई टेक इलेक्ट्रॉनिक्स, हरित ऊर्जा, रक्षा प्रणालियों, उन्नत औद्योगिक उपयोग, इलेक्ट्रिक वाहनों और नई उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
चुनौतियां
- आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण: वैश्विक दुर्लभ भू-खनिज खनन में चीन का लगभग 70% योगदान है।
- भारत के पास दुर्लभ भू-खनिज का विश्व का पांचवां सबसे बड़ा भंडार है।
- निष्कर्षण की जटिलता: दुर्लभ भू-खनिज प्रकृति में बिखरे हुए होते हैं, इसलिए इन्हें आर्थिक रूप से निकालना कठिन होता है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएं: इन खनिजों के खनन और प्रसंस्करण से विषाक्त अपशिष्ट एवं रेडियोधर्मी उप-उत्पाद उत्पन्न होते हैं।
आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती के लिए भारत की पहलें
|