इस घोषणा-पत्र को 28वें राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सम्मेलन में अपनाए गया है। इसमें यह आह्वान किया गया है कि समग्र सरकारी तंत्र को मिलकर काम करना होगा, ताकि सार्वजनिक सेवाओं को डिजिटल कौशल के साथ मजबूत किया जा सके और तेजी से, डेटा-आधारित प्रणाली विकसित की जा सके।
विशाखापत्तनम घोषणा-पत्र के मुख्य प्रस्तावों पर एक नजर
- राष्ट्रीय दृष्टिकोण: समावेशी, नागरिक-केंद्रित और पारदर्शी शासन को बढ़ावा देना, जिसमें न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन पर जोर दिया गया हो।
- प्रौद्योगिकी-आधारित शासन: AI, ML, ब्लॉकचेन, GIS, IoT और डेटा एनालिटिक्स को अपनाकर बहुभाषी, रियल-टाइम एवं क्षेत्रक-विशिष्ट नागरिक सेवाएं प्रदान करना। इसमें नैतिकता और पारदर्शिता अपनाने की जरूरत पर बल दिया गया है।
- उदाहरण: डिजिटल इंडिया भाषिणी, डिजी यात्रा, NADRES V2 आदि।
- सफल मॉडल्स का विस्तार: SAMPADA/संपदा 2.0 (मध्य प्रदेश), ई-खाता (बेंगलुरु), रोहिणी ग्राम पंचायत (महाराष्ट्र), NHAI का ड्रोन एनालिटिक्स मॉनिटरिंग सिस्टम (DAMS) आदि जैसे मॉडल्स के राष्ट्रव्यापी विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना।
- जमीनी स्तर और समावेशी विकास:
- भौगोलिक पहुंच: नेशनल ई-गवर्नेंस सर्विस डिलीवरी असेसमेंट (NeSDA) ढांचे के तहत उत्तर-पूर्व और लद्दाख जैसे क्षेत्रों तक पहुंच बढ़ाना, जहां कनेक्टिविटी की समस्या है।
- सफल पंचायत डिजिटल मॉडल्स का पूरे देश में विस्तार; महिलाओं, युवाओं आदि को लक्षित कर डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम शुरू करना इत्यादि।
- साइबर सुरक्षा और स्थिरता: जीरो ट्रस्ट आर्किटेक्चर, पोस्ट-क्वांटम सुरक्षा तथा AI आधारित निगरानी जैसी तकनीकों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रकों जैसे परिवहन, रक्षा एवं नागरिक सेवा प्लेटफॉर्म में लागू करना।
- कृषि और संधारणीयता: नेशनल एग्री स्टैक के माध्यम से किसानों को बेहतर क्रेडिट, सलाह और बाजार तक पहुंच प्रदान करना।
- अन्य पहलें: सरकार, उद्योग एवं अन्य साझेदारों के बीच सहयोग से बड़े पैमाने पर डिजिटल समाधान विकसित करना; उदाहरण के लिए- विशाखापत्तनम को आई.टी. और नवाचार केंद्र बनाना।
भारत में ई-गवर्नेंस के समक्ष प्रमुख चुनौतियां
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