सितंबर 2025 में स्वीकृत TN-SHORE, 1,675 करोड़ रुपये की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है।
इस परियोजना को मुख्य रूप से विश्व बैंक द्वारा वित्त-पोषित किया जाएगा। इसका उद्देश्य तमिलनाडु की तटीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और उसकी प्राकृतिक प्रतिरोधकता को बढ़ाना है।
- TN-SHORE का मुख्य घटक 1,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मैंग्रोव की बहाली और वृक्षारोपण है।
- विश्व बैंक द्वारा दी जाने वाली धनराशि सीधे ग्राम-स्तरीय मैंग्रोव परिषदों को दी जाएगी। इन परिषदों में स्थानीय लोग शामिल होंगे।
- मैंग्रोव के अलावा, इस पहल का लक्ष्य 30,000 हेक्टेयर समुद्री क्षेत्र का पुनर्स्थापन करना तथा लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे डुगोंग और कछुओं की सुरक्षा करना भी है।
मैंग्रोव और उनका महत्त्व

- मैंग्रोव लवण-सहिष्णु पादप समुदाय के अंतर्गत आते हैं। ये उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- उच्च वर्षा (1,000-3,000 मिमी. के बीच) और उच्च तापमान (26 डिग्री C से 35 डिग्री C के बीच) वाले क्षेत्र, मैंग्रोव के लिए अनुकूल होते हैं।
- जलवायु में भूमिका: मैंग्रोव को “प्रकृति का कार्बन भंडार” कहा जाता है, क्योंकि ये सामान्य उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में प्रति एकड़ 7.5 से 10 गुना अधिक कार्बन संचित (store) करते हैं।
- आजीविका: महाराष्ट्र के नवघर में, सरकार की परियोजना के तहत मैंग्रोव पुनर्स्थापन (restoration) ने महिलाओं को सालभर स्थायी रोजगार दिलाने में मदद की है। यह संधारणीय मड क्रैब फार्मिंग के माध्यम से संभव हुआ है।
भारत में मैंग्रोव
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 (ISFR-2023) के अनुसार, देश में कुल मैंग्रोव क्षेत्रफल 4,991.68 वर्ग किलोमीटर है।
- 2001 से 2023 के बीच भारत में मैंग्रोव क्षेत्रफल में 11.4% की निवल वृद्धि दर्ज की गई।
- भारत में सबसे ज्यादा मैंग्रोव पश्चिम बंगाल (42.45%) में पाए जाते हैं। इसके बाद गुजरात का स्थान है, जहां 23.32% मैंग्रोव क्षेत्र है।