यह रिपोर्ट नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) ने जारी की है। यह रिपोर्ट परियोजना स्थल निर्धारण, अवसंरचना के विकास और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने हेतु मार्गदर्शन के लिए नीति-आधारित एवं निवेश के लिए तैयार रूपरेखा प्रदान करती है।
- इस रिपोर्ट का उद्देश्य भारत की पंचामृत प्रतिबद्धताओं को पूरा करना; 2047 तक ऊर्जा आत्मनिर्भरता हासिल करना और 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

- राष्ट्रीय सौर क्षमता (Solar Potential) का नया आकलन: 2014 में जहां क्षमता 749 GWp आंकी गई थी, वहीं अब यह बढ़कर लगभग 3,343 GWp हो गई है।
- भौगोलिक वितरण: राजस्थान और महाराष्ट्र के अलावा कुछ अन्य राज्यों में भी बहुत अधिक सौर क्षमता पाई गई है। (चित्र देखें)
- देश में चिन्हित की गई कुल उपयुक्त बंजर भूमि का लगभग 6.69% हिस्सा सौर ऊर्जा प्राप्ति में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत में सौर ऊर्जा क्षमता को पूरी तरह हासिल करने में मौजूद प्रमुख चुनौतियां
- भूमि अधिग्रहण: बड़े स्तर पर सोलर पार्क लगाने के लिए बहुत अधिक भूमि की आवश्यकता होती है, जो कई बार पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील या कृषि के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आती है।
- जैसे- राजस्थान और गुजरात में चरागाह भूमि व जैव विविधता से समृद्ध रेगिस्तानी पारितंत्र को लेकर संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है।
- ग्रिड एकीकरण: बड़े पैमाने पर किफायती ऊर्जा भंडारण तकनीकों की कमी के कारण मौसम पर निर्भर सौर ऊर्जा को ग्रिड में सही ढंग से जोड़ना मुश्किल होता है।
- उच्च प्रारंभिक लागत: मॉड्यूल की कीमतें कम होने के बावजूद प्रोजेक्ट लगाने की शुरुआती लागत अब भी बहुत अधिक है।
- अन्य: विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम/ DISCOMs) पर वित्तीय दबाव; सोलर मॉड्यूल के लिए आयात पर निर्भरता (लगभग 80% चीन से आयातित); नीतिगत और विनियामकीय अनिश्चितता; कुशल कार्यबल की कमी, आदि।
सौर ऊर्जा के लिए शुरू की गई पहलें
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