NDCs पेरिस समझौते के अनुच्छेद 4 के तहत राष्ट्रीय उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अनुकूलन के लिए प्रत्येक देश के प्रयासों को दर्शाते हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- रिपोर्ट में पाया गया कि 64 पक्षकार देशों द्वारा प्रस्तुत NDCs वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने के लिए आवश्यक उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य से काफी पीछे हैं। ये पक्षकार देश 2019 में वैश्विक उत्सर्जन के लगभग 30% हिस्से के लिए जिम्मेदार थे।
- 1.5°C लक्ष्य प्राप्त करने के लिए 2035 तक उत्सर्जन में 60% की कटौती जरूरी है,
- हालांकि, NDCs के परिणामस्वरूप 2035 तक केवल 17% की गिरावट आने का अनुमान है।
- इसके अतिरिक्त, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार, 2024 में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) का स्तर अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था।
- अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
- उत्सर्जन ट्राजेक्टरीज़: नए NDCs लागू करने पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पहले चरम पर पहुंचेगा और फिर 2035 तक उसमें तेज गिरावट आएगी।
- दायरे में सुधार: नए NDCs की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में सुधार हुआ है। अब 89% देशों ने पूरे अर्थतंत्र के स्तर पर लक्ष्य तय किए हैं, जबकि पहले यह आंकड़ा 81% था।
- कंडीशनैलिटी गैप: वनीकरण, पुनर्वनीकरण और सौर ऊर्जा जैसे प्रमुख शमन उपायों में उच्च कंडीशनैलिटी गैप हैं, यानी इन योजनाओं की सफलता काफी हद तक बाहरी वित्तीय सहायता पर निर्भर है।
- निजी वित्त: कम लाभप्रदता के कारण निजी वित्त जुटाने में कठिनाइयां बनी हुई हैं।
भारत के NDCs (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान):
|