जनजातीय कार्य मंत्रालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को "संरक्षण एवं सामुदायिक अधिकारों में सामंजस्य: भारत के टाइगर रिज़र्व में सह-अस्तित्व और पुनर्वास के लिए नीतिगत फ्रेमवर्क " शीर्षक से एक संक्षिप्त विवरण भेजा है।
इस विवरण में की गई मुख्य सिफारिशों पर एक नजर
- स्वैच्छिक स्थानांतरण: वनवासियों का वनों से स्थानांतरण बिना किसी दबाव या प्रलोभन के स्वतंत्र रूप से और अग्रिम एवं सूचित सहमति पर ही आधारित होना चाहिए।
- वन अधिकार अधिनियम (FRA) वनवासियों को वनों से जबरदस्ती बाहर निकालने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- FRA के तहत, किसी वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों या अन्य परम्परागत वन निवासियों को उनके द्वारा उपयोग की जा रही वन भूमि से तब तक बेदखल नहीं किया जाएगा या हटाया नहीं जाएगा, जब तक कि मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती।
- यह कानून राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और टाइगर रिज़र्व पर लागू होता है।
- वन अधिकार अधिनियम (FRA) वनवासियों को वनों से जबरदस्ती बाहर निकालने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- पर्यावरण और जनजातीय कार्य मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से समुदाय-केंद्रित संरक्षण और पुनर्वास (NFCCR) के लिए एक राष्ट्रीय फ्रेमवर्क स्थापित करना चाहिए।
वनवासियों के स्थानांतरण के समक्ष प्रमुख चुनौतियां
- अधिकार बनाम संरक्षण मॉडल: वन संरक्षण संबंधी पारंपरिक मॉडल में स्थानीय लोगों को साझेदार की बजाय खतरे के रूप में देखा जाता है। इससे FRA का समावेशिता आधारित दृष्टिकोण प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है।
- आजीविका में व्यवधान: वन संसाधनों तक पारंपरिक पहुंच पर प्रतिबंध और संरक्षित क्षेत्रों से स्थानांतरण के कारण कई वनवासी समूहों की आजीविका को नुकसान पहुंचता है।
- असमान विकास और क्षेत्रीय असमानता: वनों पर निर्भर जनजातीय क्षेत्र अक्सर अवसंरचना, कौशल, एवं सेवाओं की कमी से जूझते हैं। ये क्षेत्र उन उच्च-आय वाले राज्यों के मुकाबले पीछे रह जाते हैं, जो आधुनिक सेवाओं और बेहतर सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- सतत विकास लक्ष्य: इसमें SDG-1 (गरीबी उन्मूलन) और SDG-13 (जलवायु कार्रवाई) के बीच संतुलन बनाना शामिल है।
आगे की राह
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