हाल ही में, “कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट” पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हड़प्पा सभ्यता यानी सिंधु घाटी सभ्यता का पतन किसी एक बड़ी विनाशकारी घटना के कारण नहीं हुआ था।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- सूखे का प्रभाव: सामान्य धारणा यह थी कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन किसी एक विनाशकारी घटना के कारण हुआ। नए अध्ययन के अनुसार यह कई सदियों तक जारी सूखे की कई दीर्घकालिक घटनाओं का परिणाम था।
- 2425 से 1400 ईसा पूर्व के बीच लगभग 85 वर्षों तक चलने वाले चार भीषण सूखे पड़े, जिनका प्रभाव लगभग पूरे क्षेत्र पर पड़ा।
- संसाधनों में कमी होना: जल-चक्रों (hydrological) में परिवर्तन के कारण नदियों, झीलों और मृदा में जल की कमी हो गई। इन परिघटनाओं ने हड़प्पावासियों को जीवन की अनुकूल दशाओं की खोज में बार-बार जगह बदलने के लिए मजबूर कर दिया।
- व्यापार में गिरावट दर्ज होना: नदियों में जलस्तर कम होने से नदी मार्ग से होने वाला व्यापार बाधित हुआ और कृषि कार्य भी चुनौतीपूर्ण हो गया। इन वजहों से आबादी को पलायन करना पड़ा।
- अन्य कारक: खाद्य आपूर्ति में कमी, शासकीय संरचना कमजोर होना जैसे कारकों ने भी सिंधु घाटी सभ्यता के पतन की प्रक्रिया को तेज किया।
