भारत में आपदा राहत के वित्त-पोषण में अंतराल बढ़ता जा रहा है। आपदा राहत के लिए आकलन की गई आवश्यकताओं और जारी की गई वास्तविक राशि के बीच का अंतराल लगातार बढ़ रहा है। इसका एक उदाहरण केरल के वायनाड में भूस्खलन के बाद जारी की गई राशि है।
- यह स्थिति इस बात पर सवाल उठाती है कि क्या भारत का वित्तीय संघवाद (Fiscal federalism) ढांचा, सहकारी संघवाद से अधिक केंद्रीयकृत और शर्त-आधारित आपदा वित्त-पोषण प्रणाली की ओर बढ़ रहा है।
भारत में आपदा से निपटने का वित्त-पोषण ढांचा:
- यह ढांचा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित किया गया है। यह ढांचा निम्नलिखित दो-स्तरीय संरचना पर आधारित है:
- राज्य आपदा मोचन निधि (State Disaster Response Fund: SDRF): इस निधि में केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकार, दोनों वित्तीय अंशदान देती हैं।
- केंद्र और राज्य सरकारें ये अंशदान आम तौर पर हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्यों के मामले में 90:10 के अनुपात में जबकि शेष राज्यों के मामले में 75:25 के अनुपात में देती हैं ।
- राज्य आपदा मोचन निधि (State Disaster Response Fund: SDRF): इस निधि में केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकार, दोनों वित्तीय अंशदान देती हैं।
- राष्ट्रीय आपदा मोचन निधि (National Disaster Response Fund: NDRF): यह निधि पूर्णतः केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है। इसका उद्देश्य SDRF को तब पूरक सहायता देना है जब किसी आपदा को आधिकारिक रूप से “गंभीर” प्रकृति के रूप में वर्गीकृत किया जाए।
वित्त-पोषण ढांचे की प्रमुख संस्थागत समस्याएं:
- राहत राशि वितरण का पुराना मानक: आपदा में किसी व्यक्ति की मौत होने पर अधिकतम 4 लाख रुपये की प्रतिपूर्ति राशि दी जाती है। यह राशि पिछले एक दशक से लगभग अपरिवर्तित है।
- आपदा के वर्गीकरण में अस्पष्टता: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता कि ‘गंभीर’ (Severe) आपदा क्या है। इससे NDRF के तहत सहायता राशि जारी करने की पात्रता में केंद्र का विवेकाधिकार बढ़ जाता है।
- सहायता राशि जारी करने की जटिल प्रक्रिया एवं देरी से जारी होना: आपदा-सहायता राशि जारी करने के लिए कई स्तरों पर स्वीकृति लेनी पड़ती है। इन प्रक्रियाओं में राज्य द्वारा ज्ञापन देना, केंद्रीय टीम द्वारा आपदा से हुए नुकसान का आकलन, उच्च-स्तर पर मंजूरी लेना, आदि शामिल हैं।
- आपदा-राहत आवंटन पर वित्त आयोग के मानदंड में कमियां: वर्तमान मानदंड में राज्य की जनसंख्या और कुल भौगोलिक क्षेत्रफल को आपदा जोखिम आवंटन का प्रमुख संकेतक माना गया है। इस मानदंड में किसी राज्य के अधिक आपदा-प्रवण होने को नजरअंदाज किया गया है।
- आपदा-सुभेद्यता (Disaster vulnerability) के आकलन के लिए आपदा जोखिम सूचकांक को आधार बनाने की बजाय निर्धनता स्तर को आधार बनाया जाता है।
आपदा से बेहतर तरीके से निपटने हेतु वित्तपोषण पर आगे की राह:
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