वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) विकास रिपोर्ट, 2025 जारी की गई | Current Affairs | Vision IAS
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यह रिपोर्ट भू-राजनीतिक परिवर्तनों, बढ़ती डिजिटल सेवाओं, क्षेत्रीय व्यापार प्रभुत्व और उभरते हुए रीशोरिंग रुझानों के बीच लचीली जीवीसी पर प्रकाश डालती है, और आर्थिक विकास और रोजगार में जीवीसी की भूमिका पर जोर देती है।

In Summary

यह रिपोर्ट “रीवायरिंग GVCs इन अ चेंजिंग ग्लोबल इकोनॉमी” शीर्षक से जारी की गई है।  यह रिपोर्ट  एशियाई विकास बैंक (ADB), विश्व व्यापार संगठन (WTO), विश्व आर्थिक मंच (WEF) आदि के संयुक्त प्रयास से तैयार की गई है।

  • वैश्विक मूल्य श्रृंखला (Global Value Chain) का अर्थ है-किसी तैयार उपभोक्ता वस्तु के उत्पादन की वह श्रृंखला, जिसके प्रत्येक चरण में कुछ मूल्य (वैल्यू) संवर्धन होता है। ये कार्य कम से कम दो चरणों और अलग-अलग देशों में संपन्न होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए- एक मोबाइल फोन के बनने से लेकर उपभोक्ता तक पहुँचने में कई देशों से और कई चरणों में मूल्य (Value) जुड़ता है। इनमें अनुसंधान और डिजाइन, अलग-अलग देशों से पुर्जों की खरीद, असेंबली, मार्केटिंग और ब्रांडिंग, वितरण और बिक्री; वारंटी, रिपेयर और ग्राहक सहायता आदि शामिल हैं। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं पर एक नजर

  • वैश्वीकरण की पुनर्संरचना हो रही है, न कि पुराने युग में लौट रहे हैं: प्रौद्योगिकियों में परिवर्तन, हरित या संधारणीय गतिविधियों को प्राथमिकता देने और बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बावजूद वैश्विक मूल्य श्रृंखला मजबूती बनी हुई है।
    • वैश्विक व्यापार में वैश्विक मूल्य श्रृंखला की वर्तमान हिस्सेदारी 46.3% है। यह हिस्सेदारी 2022 के 48% के सर्वोच्च स्तर से केवल आंशिक रूप से कम हुई है।
  • सेवाओं (सर्विसेज) और डिजिटल व्यापार का उदय: वैश्विक मूल्य श्रृंखला भागीदारी में सेवा क्षेत्रक ने वस्तुओं को पीछे छोड़ दिया है। साथ ही, विनिर्माण निर्यात में मूल्य संवर्धन का एक-तिहाई से अधिक योगदान सेवा क्षेत्रक का है।
    • डिजिटल सेवाओं के निर्यात में तेज संवृद्धि के कारण भारत ने वैश्विक मूल्य श्रृंखला में अपनी भागीदारी को और अधिक बढ़ाया है। 
  • क्षेत्रीय केंद्रों का वर्चस्व बढ़ा है: एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे क्षेत्रों का वैश्विक मूल्य श्रृंखला व्यापार में अधिक हिस्सेदारी है। दूसरी ओर, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका वैश्विक मूल्य श्रृंखला भागीदारी तथा व्यापार के साथ एकीकरण में पीछे रह गए हैं।
  • नई प्रवृत्तियां: चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ में री-शोरिंग (Reshoring) यानी विनिर्माण कार्य के वापस आने के कारण इन देशों/क्षेत्रों का विदेशी मूल्य संवर्धन पर निर्भरता घटी है।
    • वैसे, चीन के वर्चस्व के बावजूद अब अधिक देशों में विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए-इलेक्ट्रिक-वाहन (EV) के वैश्विक उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 76.9% है।
  • भारत की स्थिति: भारत, विश्व की शीर्ष 10 मूल्य-संवर्धन वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। 
    • वैश्विक निर्यात में घरेलू मूल्य संवर्धन (Global domestic value added in exports) के मामले में भारत की हिस्सेदारी 2024 में 2.8% थी। 

वैश्विक मूल्य श्रृंखला का महत्व

  • निर्धनता उन्मूलन में: विश्व बैंक के अनुसार पारंपरिक व्यापार की तुलना में किसी देश की वैश्विक मूल्य श्रृंखला भागीदारी में 1% की वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय में लगभग दोगुनी वृद्धि होने का अनुमान है।
  • रोजगार सृजन में: वैश्विक मूल्य श्रृंखला विशेषकर श्रम-प्रधान और महिलाओं के नियोजन वाले रोजगारों में वृद्धि कर रही है।
    • उदाहरण के लिए: बांग्लादेश का वैश्विक मूल्य श्रृंखला-उन्मुख परिधान (Apparel) निर्यात क्षेत्रक में महिलाओं को अधिक रोजगार मिला है।
  • अन्य दृष्टिकोण से महत्व: 
    • आर्थिक संवृद्धि में योगदान करती है, 
    • उत्पादकता और विशेषज्ञता में वृद्धि करती है, 
    • व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिलता है, तथा 
    • नए बाजारों तक पहुंच मिलती है।
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