उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति द्वारा अनुशंसित अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को स्वीकार कर लिया है। साथ ही, कई अन्य महत्वपूर्ण निर्देश भी जारी किए हैं।
- उच्चतम न्यायालय के अनुसार, यह परिभाषा 'भू-परिदृश्य स्तर’ पर संरक्षण प्रदान करती है। इसमें अरावली को अलग-अलग पहाड़ियों के रूप में नहीं, बल्कि एक निरंतर भूगर्भीय कटक (geological ridge) के रूप में माना गया है।
विशेषज्ञ समिति की मुख्य सिफारिशों पर एक नजर
- परिचालन संबंधी परिभाषाएं: समिति ने अरावली पहाड़ियों और श्रृंखला दोनों को परिभाषित किया है।
- अरावली पहाड़ियां: अरावली जिलों में स्थित कोई भी ऐसा भू-भाग, जिसकी ऊंचाई स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक हो।
- अरावली श्रृंखला: एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में स्थित दो या दो से अधिक अरावली पहाड़ियां।
- कोर/ अलंघनीय क्षेत्र सुरक्षा: संरक्षित क्षेत्रों, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ), टाइगर रिज़र्व, आर्द्रभूमियों और प्रतिपूरक वनरोपण प्रबंधन एवं नियोजन प्राधिकरण कोष (CAMPA) वृक्षारोपण स्थलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध होगा।
उच्चतम न्यायालय के प्रमुख निर्देश
- सतत खनन के लिए प्रबंधन योजना (MPSM): भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) संपूर्ण अरावली क्षेत्र के लिए एक प्रबंधन योजना तैयार करेगा।
- नए खनन पट्टों (Leases) पर रोक: जब तक झारखंड के सारंडा वन के लिए MPSM की तर्ज पर ICFRE द्वारा अरावली के लिए भी MPSM तैयार नहीं कर ली जाती, तब तक नए खनन पट्टों पर रोक रहेगी।
अरावली के बारे में मुख्य तथ्य
- यह विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। ये प्री-कैम्ब्रियन युग के पर्वत हैं, जो हिमालय से भी प्राचीन हैं।
- इसका विस्तार 800 किमी से अधिक क्षेत्र में है। यह गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा तक विस्तारित है।
- सबसे ऊँची चोटी: गुरु शिखर (माउंट आबू)।

अरावली के संरक्षण के लिए शुरू की गई पहलें
|