कोयला, खान और इस्पात पर संसदीय स्थायी समिति ने ‘खनिज एवं धातुओं में आत्मनिर्भरता’ पर रिपोर्ट प्रस्तुत की | Current Affairs | Vision IAS
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रिपोर्ट में कुछ क्षेत्रों में भारत की खनिज आत्मनिर्भरता पर प्रकाश डाला गया है, आयात पर निर्भरता की पहचान की गई है और खनिज और धातु आत्मनिर्भरता के लिए नीतिगत सुधारों, प्रौद्योगिकी अपनाने और सार्वजनिक-निजी प्रयासों की सिफारिश की गई है।

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यह रिपोर्ट भारत द्वारा खनिज एवं धातुओं के आयात पर निर्भरता को कम करने तथा आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने हेतु एक रोडमैप प्रस्तुत करती है।

खनिज एवं धातुओं में भारत की आत्मनिर्भरता की वर्तमान स्थिति

  • भारत बॉक्साइट, क्रोमाइट, लौह अयस्क, कायनाइट, चूना पत्थर और सिलिमेनाइट जैसे प्रमुख औद्योगिक खनिजों के मामले में बहुत हद तक आत्मनिर्भर है।
  • हालांकि, मैग्नेसाइट, मैंगनीज अयस्क और रॉक फॉस्फेट जैसे कुछ खनिजों की देश में उपलब्धता कम है। देश में इन खनिजों की मांग को पूरा करने के लिए इनका आयात करना पड़ता है। 
  • लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए भारत 100% आयात पर निर्भर है। 

आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में प्रमुख चुनौतियां

  • परिचालन में देरी: वर्ष 2015 के बाद से नीलाम किए गए 486 खनिज ब्लॉक्स में से केवल 63 ही परिचालन में हैं। खनन परियोजनाओं का परिचालन शुरू करने और खनिज उत्पादन आरंभ करने  में 5 से 14.5 वर्षों का लंबा समय लग जाता है।
  • अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों की कमी: खनन क्षेत्र में स्वचालन (Automation), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के उपयोग में भारत वैश्विक मानकों से पीछे है। इससे खनिज उत्पादन की लागत बढ़ जाती है और खनिज अन्वेषण की गति भी धीमी रहती है।
  • खनिज अन्वेषण से संबंधित बाधाएं: भारत के कुल क्षेत्रफल का केवल लगभग 15% क्षेत्र का ही विस्तृत अन्वेषण किया गया है। इनमें भी मुख्यतः धरातलीय निक्षेपों यानी धरातल पर या कम गहराई में स्थित खनिज भंडारों की ही खोज की गई है। प्रौद्योगिकी की कमी की वजह से अधिक गहराई में स्थित खनिज भंडारों तक नहीं पहुँचा जा सका है।

मुख्य सिफारिशें

  • अर्बन माइनिंग एवं चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकॉनमी): समिति ने ई-अपशिष्ट, औद्योगिक स्क्रैप और इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरियों में इस्तेमाल खनिजों की पुनर्प्राप्ति पर विशेष ध्यान देने की सिफारिश की है।
  • विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय: अति-महत्वपूर्ण खनिज (क्रिटिकल मिनरल) परियोजनाओं में नीलामी के बाद की प्रगति और त्वरित वैधानिक मंजूरियों के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समूह गठित करने का सुझाव दिया गया है।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रकों के बीच सहयोग: खनिज अन्वेषण में तेजी लाने और प्रसंस्करण के विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) की क्षमता और निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का संयुक्त रूप से उपयोग किया जाना चाहिए।
  • कौशल में सुधार: समिति ने खनन कंपनियों को अपने कार्यबल के कौशल विकास हेतु कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) निधि का एक हिस्सा आवंटित करने की सिफारिश की है। इससे यह कार्यबल AI और स्वचालन जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने में सक्षम हो सकेगा।

खनिज में आत्मनिर्भरता प्राप्ति हेतु नीतिगत कदम

  • खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम में संशोधन (2015–2023): संशोधनों के तहत निम्नलिखित नए सुधार किए गए हैं:
    • पारदर्शी ई-नीलामी पद्धति की शुरुआत की गई है, 
    • सभी नए खनन पट्टों (Mining Leases) के लिए 50 साल की एक समान पट्टा अवधि निर्धारित की गई है, और 
    • 29 ‘अति-गहराई में स्थित व अति-महत्वपूर्ण (क्रिटिकल) खनिजों’ के लिए नई अन्वेषण लाइसेंस (EL) श्रेणी बनाई गई है।
  • राष्ट्रीय अति-महत्वपूर्ण खनिज मिशन (National Critical Mineral Mission: NCMM): यह मिशन 2025 में शुरू हुआ है। इसका उद्देश्य देश में 30 चिन्हित अति-महत्वपूर्ण खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना है। 
  • विदेश में खनिज ब्लॉक का अधिग्रहण: खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) के माध्यम से भारत अर्जेंटीना, चिली और ऑस्ट्रेलिया जैसे खनिज संसाधन-समृद्ध देशों में खनिज परिसंपत्तियों की खोज कर रहा है। 
    • खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड NALCO, HCL और MECL का संयुक्त उपक्रम है।  
  • अपतटीय (ऑफशोर) खनन: वर्ष 2024 में सरकार ने निर्माण-रेत सामग्री और बहुधात्विक ग्रंथियों (Polymetallic nodules) की प्राप्ति हेतु 13 अपतटीय खनिज ब्लॉक्स की पहली नीलामी शुरू की।
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