भारत में पोत - निर्माण क्षेत्रक का पुनरुत्थान | Current Affairs | Vision IAS
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भारत का लक्ष्य 2047 तक वित्तीय सहायता, बुनियादी ढांचे के उन्नयन, हरित पहलों और नीतिगत उपायों के माध्यम से अपने जहाज निर्माण उद्योग को बढ़ावा देना है ताकि रणनीतिक सुरक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाया जा सके।

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पोत-निर्माण (Shipbuilding) को ‘भारी इंजीनियरिंग की जननी’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह क्षेत्रक राष्ट्रीय सुरक्षा, सामरिक स्वायत्तता तथा व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं की निरंतरता को बढ़ावा देता है।

भारत में पोत-निर्माण की वर्तमान स्थिति

  • भारत के पोत निर्माण उद्योग की वैश्विक पोत-परिवहन (शिपिंग) बाजार में हिस्सेदारी 1% से भी कम है।
    • चीन, विश्व में सर्वाधिक पोत-निर्माण क्षमता वाला देश है। इसके बाद दक्षिण कोरिया और जापान का स्थान है।
    • भारत का लगभग 92% व्यापार विदेशी स्वामित्व वाले पोत से होता है। इसके लिए भारत प्रतिवर्ष लगभग 75 अरब अमेरिकी डॉलर का भुगतान करता है।
  • कोचीन शिपयार्ड भारत में पोत-निर्माण और मरम्मत की सबसे अधिक क्षमता वाला शिपयार्ड है।

पोत-निर्माण क्षेत्रक के समक्ष मुख्य चुनौतियां

  • उच्च पूंजी लागत: पोत-निर्माण के लिए उच्च ब्याज दर पर वित्त-पोषण प्राप्त होता है। इस वजह से उच्च निवेश जोखिमपूर्ण हो जाता है। इससे शिपयार्ड अपनी क्षमता का विस्तार नहीं कर पाते हैं।
  • आयात पर निर्भरता: पोत-निर्माण के लिए आवश्यक कई अत्याधुनिक सामग्रियों और उपकरणों की देश में उपलब्धता कम है। इसलिए इन्हें आयात करना पड़ता है। 
  • कम उत्पादकता: चीन की तुलना में भारतीय शिपयार्डों की उत्पादकता कम है। इनकी वजहों में शामिल हैं; पुरानी तकनीक का उपयोग, निर्माण में अधिक समय लगना और कई निर्माण सामग्रियों की समय पर आपूर्ति में अवरोध उत्पन्न होना, आदि।

आगे की राह

वर्ष 2047 तक भारत को वैश्विक सामुद्रिक शक्ति और पोत-निर्माण केंद्र बनाने के लिए भारत के पोत-निर्माण क्षेत्रक को सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है।

भारत में पोत-निर्माण को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख पहलें

  • वित्तीय सहायता: पोत-निर्माण वित्तीय सहायता योजना, समुद्री विकास निधि (Maritime Development Fund) का गठन जैसे कदम उठाए गए हैं।
  • सार्वजनिक/सरकारी क्षेत्रक द्वारा खरीद में प्राथमिकता: मेक इन इंडिया आदेश, 2017 के तहत 200 करोड़ रुपये तक के पोत भारतीय शिपयार्डों से ही खरीदे जाने का प्रावधान है।
  • अवसंरचना का दर्जा: पोत-परिवहन को ‘अवसंरचना’ के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया है। इससे कम ब्याज दर पर दीर्घकालिक वित्तपोषण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
  • हरित नौका दिशानिर्देश, ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP): इसके तहत हरित पोत-निर्माण और घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन दिया जाता है।
  • पोत-निर्माण विकास योजना (SbDS): इसके तहत ग्रीनफील्ड संकुल (क्लस्टर) की स्थापना, शिपयार्ड का विस्तार और निर्माण से जुड़े जोखिम प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाता है।
  • अन्य पहलें: पोत-परिवहन क्षेत्रक  के लिए मैरीटाइम अमृतकाल विज़न 2047 जारी किया गया है।
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