आरबीआई द्वारा ब्याज दर डेरिवेटिव्स ढांचा
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव्स के लिए एक नया ढाँचा जारी किया है। इस ढाँचे का उद्देश्य बाज़ार की भागीदारी को व्यापक बनाना और तटीय दर बाज़ार (onshore rates market) को गहरा करना है।
प्रमुख विशेषताऐं
- बाजार प्रतिभागियों का विस्तार:
- बैंक और प्राथमिक डीलर बाज़ार-निर्माता (market-makers) के रूप में कार्य करना जारी रखेंगे।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ-ऊपरी परत (NBFC-ULs) अब घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ग्राहकों को उत्पादों की एक व्यापक श्रृंखला की पेशकश कर सकती हैं।
- विदेशी संस्थाओं को अधिक लचीलापन प्राप्त होता है, जिससे वे एक प्रणाली-व्यापी जोखिम सीमा के भीतर, शुद्ध हेजिंग की आवश्यकताओं से परे भी पोज़िशन ले सकती हैं।
- छोटे प्रतिभागियों के लिए सुरक्षा:
- खुदरा उपयोगकर्ता केवल सरल, गैर-लीवरेज्ड अनुबंधों, जैसे कि स्वैप, फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट्स, और खरीदे गए विकल्प (bought options) तक ही सीमित रहेंगे।
- खुदरा उपयोगकर्ताओं को विकल्प बेचने या प्रीमियम-प्राप्त करने वाली संरचनाओं (premium-receiving structures) में शामिल होने पर प्रतिबंध है।
कार्यान्वयन और नियामक आवश्यकताएँ
- कार्यान्वयन समय-सीमा: ये नियम मार्च 2026 से प्रभावी होंगे।
- विनियामक आवश्यकताएँ:
- पिछले दो दशकों के खंडित परिपत्रों का समेकन।
- सभी ट्रेडों की, जिनमें अपतटीय संबंधित पक्षों द्वारा निष्पादित ट्रेड भी शामिल हैं, निकट-वास्तविक-समय रिपोर्टिंग आवश्यक है।
- सभी डेरिवेटिव अनुबंधों को RBI-अधिकृत मानक दरों का संदर्भ देना होगा।