जेलों में विकलांगता-संबंधी सुविधाओं पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में विकलांगता संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए निर्देश जारी किए हैं। यह निर्देश जी.एन. साईबाबा और स्टेन स्वामी जैसे मामलों से प्रभावित होकर निरोध केन्द्रों में विकलांगता कानून को लागू करने पर केंद्रित एक याचिका पर दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
- संवैधानिक गारंटी: याचिका में विकलांगता वाले कैदियों के लिए समानता और गरिमापूर्ण जीवन की संवैधानिक गारंटी पर प्रकाश डाला गया।
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016: यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों, जिनमें जेल में बंद व्यक्ति भी शामिल हैं, के लिए सरकारी सहायता को अनिवार्य बनाता है।
- कार्यान्वयन चुनौतियाँ:
- यद्यपि जेलों का प्रबंधन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है, केंद्र सरकार मॉडल जेल मैनुअल, कानूनों और सलाहों के माध्यम से नीति को प्रभावित करती है।
- कई राज्य जेल मैनुअल अप्रचलित हैं और कैदियों में शारीरिक क्षमता को ही मानकर चलते हैं।
- पृथक्करण पर न्यायालय का रुख: सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में जाति-आधारित पृथक्करण को असंवैधानिक घोषित किया है तथा वह जाति, लिंग और विकलांगता के आधार पर व्यापक भेदभाव की निगरानी कर रहा है।
- जाति और विकलांगता का अंतर्संबंध: कैदियों के बीच जातिगत पूर्वाग्रह और विकलांगता का अंतर्संबंध देखा गया है, जिसमें दलित और आदिवासी कैदियों का प्रतिनिधित्व अधिक है।
- जेलों में मानसिक बीमारी: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार जेलों में मानसिक बीमारी से ग्रस्त कैदियों की संख्या काफी अधिक है।
- बजटीय और संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक:
- विकलांगता से संबंधित सुविधाओं के लिए स्पष्ट कर्तव्यों को शामिल करने के लिए जेल मैनुअल में संशोधन।
- प्रवेश के समय विकलांगता की जांच करना तथा आवश्यक सहायता प्रदान करना।
- मुख्य दायित्वों के रूप में सुगम्यता और गैर-भेदभाव को संबोधित करने के लिए वित्त पोषण में वृद्धि।
- सार्वजनिक निगरानी और जवाबदेही: प्रभावी सार्वजनिक निगरानी के लिए स्वतंत्र निरीक्षण और जेलों में जाति और विकलांगता पर अलग-अलग आंकड़ों का नियमित प्रकाशन आवश्यक है।