सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशेष अदालतों की मांग
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) और विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज मामलों के त्वरित विचारण हेतु विशेष न्यायालयों की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया है।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने एक खंडपीठ की अध्यक्षता करते हुए इन विशेष न्यायालयों की तुलना "अस्पताल के आपातकालीन वार्ड" से की।
- इसका उद्देश्य UAPA और NIA के तहत होने वाले मुकदमों में तेजी लाना और यह सुनिश्चित करना है कि वे बिना किसी अनावश्यक विलंब के संपन्न हों।
- मुख्य न्यायाधीश ने सरकार से ऐसे मुकदमों के त्वरित निपटारे के लिए इन विशेष अदालतों की स्थापना में सक्रिय रूप से सहयोग करने का आग्रह किया।
निचली अदालतों के न्यायाधीशों का मूल्यांकन
सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत के न्यायाधीशों के मूल्यांकन की पारंपरिक पद्धति पर "पुनर्विचार (Revisit)" करने का सुझाव दिया है।
- समस्या: वर्तमान में न्यायाधीशों का मूल्यांकन उनके मासिक मामलों के निपटान के आधार पर किया जाता है।
- प्रभाव: जटिल UAPA और NIA मामलों को संभालने वाले न्यायाधीशों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि इन मामलों में समय अधिक लगता है। न्यायालय का उद्देश्य एक ऐसी पद्धति लाना है जो न्यायाधीशों के प्रदर्शन को बेहतर ढंग से दर्शा सके।
विशेष न्यायाधीशों का पदनाम और वित्त पोषण
- उच्च न्यायालयों को इन मुकदमों के लिए विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए और केंद्र सरकार को इन न्यायालयों की स्थापना के लिए "आवर्ती और गैर-आवर्ती" निधि उपलब्ध करानी चाहिए।
- एक बार जब विशेष न्यायाधीश किसी मुकदमे की सुनवाई पूरी कर लेते हैं, तो वे अन्य मुकदमों की सुनवाई के लिए स्थानांतरित हो सकते हैं।
मौजूदा और नियोजित विशेष न्यायालय
- पंजाब, असम और बिहार के उच्च न्यायालयों ने अपनी-अपनी राज्य सरकारों के सहयोग से ऐसे न्यायालय स्थापित करने पर सहमति जताई है।
- झारखंड में पहले से ही इन मामलों के त्वरित निपटारे के लिए एक विशेष न्यायालय गठित है।
डिजिटल अरेस्ट घोटाले
खंडपीठ ने डिजिटल अरेस्ट घोटाले के कारण होने वाले भारी वित्तीय नुकसान पर भी चिंता व्यक्त की।
- पीठ ने डिजिटल अरेस्ट घोटालों के कारण होने वाली भारी वित्तीय क्षति से संबंधित चिंताओं को भी संबोधित किया।
- इस मुद्दे से निपटने हेतु हितधारकों और अधिवक्ताओं को महान्यायवादी (AG) को उपचारात्मक कदम प्रस्तावित करने के लिए कहा गया।
- महान्यायवादी आर. वेंकटरमणी ने "अंतर-विभागीय मंत्रालयी चर्चा" की आवश्यकता पर बल दिया और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा की गई प्रगति को स्वीकार किया।
- पूर्व के निर्देशों ने CBI को सीधे रिपोर्ट किए गए डिजिटल अरेस्ट घोटालों की प्रारंभिक जांच करने की अनुमति दी थी।
- इन घोटालों में बैंक कर्मियों की संलिप्तता की जांच करने के लिए CBI को "पूर्ण स्वायत्तता" प्रदान की गई है।
- उच्चतम न्यायालय ने डिजिटल अरेस्ट घोटालों पर तत्काल संघीय ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित किया।