केंद्र सरकार ने यह कदम लद्दाख को छठी अनुसूची के अंतर्गत लाकर उसे अधिक संवैधानिक स्वायत्तता देने की स्थानीय मांग के बाद उठाया है (इन्फोग्राफिक देखिए)।
हाल ही में अधिसूचित मुख्य नियमों और विनियमों पर एक नजर
- स्थानीय लोगों के लिए 85% सरकारी नौकरियां आरक्षित: ‘स्थानीय’ की परिभाषा अधिवास प्रमाण-पत्र नियम, 2025 के तहत दी गई है।
- यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए मौजूदा 10% आरक्षण के अतिरिक्त है।
- LAHDC में महिलाओं के लिए आरक्षण: लेह और कारगिल की लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों (LAHDC) में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें रोटेशन के माध्यम से आरक्षित की जाएंगी।
- स्थानीय भाषा और संस्कृति का संरक्षण:
- अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुर्गी को राजकीय भाषा का दर्जा दिया गया है।
- शिना, ब्रोकस्कत, बालती और लद्दाखी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए संस्थाओं से सहायता देने का प्रावधान किया गया है।
उपर्युक्त नियमों की सीमाएँ क्या हैं?
- संवैधानिक संरक्षण नहीं मिलना: सभी नए नियम संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत बनाए गए हैं। यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को बिना विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेशों के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है।
- इसका अर्थ है कि इन नियमों को केंद्र सरकार कभी भी संशोधित या रद्द कर सकती है।
- बाहरी लोगों द्वारा भूमि-स्वामित्व पर रोक नहीं: पर्यटन, निर्माण और जलवायु संबंधी बढ़ते खतरों के कारण यह मुद्दा चिंता का विषय है।
- स्थानीय विधायिका या कानून बनाने वाली परिषद का नहीं होना: गौरतलब है कि छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त जिला परिषदों (ADC) या क्षेत्रीय परिषदों (ARC) को कई अधिकार दिए गए हैं, लेकिन लद्दाख के नए नियम या कानून में इसकी व्यवस्था नहीं है।
- स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं: स्कूलों, सरकारी कार्यालयों या न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग की किसी स्पष्ट योजना का उल्लेख नहीं है।
