नंदिनी सुंदर एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2007) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विधान-मंडल द्वारा बनाए गए कानून, भले ही वे कोर्ट के पिछले आदेशों के विपरीत हों, उन्हें न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता।
- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विधान-मंडल को यह अधिकार है कि वह किसी न्यायिक निर्णय की आधारभूत वजह को हटा सकता है या संविधान संशोधन के ज़रिए उस कानून को वैध कर सकता है, जिसे पहले निरस्त किया गया हो।
न्यायालय की अवमानना के बारे में
- अर्थ: अदालत के आदेशों का जानबूझकर पालन न करना या उसका अपमान करना, जिससे अदालत की गरिमा और अधिकार कम हों।
- विधायी ढांचा: न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए कार्यवाही को विनियमित करने के नियम, 1975 बनाए गए हैं।
- अवमानना के प्रकार
- सिविल अवमानना: न्यायालय के आदेशों या निर्णयों का जानबूझकर उल्लंघन करना।
- आपराधिक अवमानना: बोलकर, लिखकर, संकेतों आदि के माध्यम से ऐसा कुछ प्रकाशित करना जो:
- न्यायालय की अधिकारिता का अपमान करता हो या कम करता हो;
- किसी भी चल रही कार्यवाही के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हो या उसमें हस्तक्षेप करता हो;
- किसी भी तरह से न्याय के प्रशासन में बाधा डालता हो।
- प्रमुख अपवाद (न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971): न्यायोचित प्रकाशन; न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष और स्पष्ट रिपोर्टिंग; न्यायिक कार्य की निष्पक्ष आलोचना, आदि।

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