ध्रुवीय अनुसंधान पोत (PRV) के निर्माण के लिए गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE) और नॉर्वे की कोंगसबर्ग ओस्लो के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। भारत के लिए पोत निर्माण क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
- कोलकाता स्थित GRSE रक्षा मंत्रालय के तहत युद्धपोत बनाने वाली मिनी रत्न श्रेणी-I की प्रमुख कंपनी है।
ध्रुवीय अनुसंधान पोत (PRV) के बारे में
- परिचय: ये पोत उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए एक प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करते हैं।
- उद्देश्य: ये पोत नवीनतम वैज्ञानिक उपकरणों से लैस होते हैं। इससे महासागरों की गहराइयों में खोज और समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र के अध्ययन में मदद मिलती है।
भारत के लिए स्वदेशी PRV का महत्त्व
- स्वदेशी आवश्यकताओं को पूरा करेगा: यह पोत गोवा स्थित राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCOPR) की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। यह संस्थान इस पोत का अनुसंधान कार्यों के लिए उपयोग करेगा।
- वर्तमान वैज्ञानिक अभियानों में सहायक: इस अनुसंधान पोत से अंटार्कटिका में स्थित मैत्री (1989) और भारती (2011) शोध स्टेशनों तथा आर्कटिक में स्थित हिमाद्रि (2008) शोध स्टेशन में भारत के वैज्ञानिक अभियानों को मदद मिलेगी।
- भौगोलिक-राजनीतिक और भौगोलिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप: यह ध्रुवीय क्षेत्रों में भारत की उपस्थिति बढ़ाने और हितों को साधने में सहायक सिद्ध होगा।
- वर्तमान समुद्री विज़न का पूरक:
- यह पोत भारत के सागर/ SAGAR यानी ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ विज़न के अनुरूप है। यह विज़न भारत की विशाल तटरेखा, रणनीतिक अवस्थिति और समुद्री विरासत का लाभ उठाता है।
- यह पोत भारत के महासागर/ MAHASAGAR यानी “सभी क्षेत्रों में सुरक्षा के लिए परस्पर और समग्र उन्नति” (Mutual and Holistic Advancement for Security Across the Regions) विज़न को भी प्राप्त करने में मदद करेगा।
- यह पोत सागरमाला 2.0 के लक्ष्यों को भी प्राप्त करने में मदद करेगा।
- सागरमाला 2.0 पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत “समुद्री अमृत काल विज़न 2047" (MAKV) की एक प्रमुख योजना है। इस विज़न का लक्ष्य 2047 तक भारत को विश्व के शीर्ष पाँच पोत-निर्माता देशों में शामिल करना है।
- अन्य उद्देश्य: इस पोत से जलवायु अनुसंधान, समुद्र विज्ञान का अध्ययन, और ध्रुवीय क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स की आपूर्ति में भी मदद मिलेगी।