जबरन विस्थापन (Forced Displacement) उन परिस्थितियों को कहते हैं, जब कोई व्यक्ति उत्पीड़न, हिंसा, मानवाधिकार हनन, आपदाओं आदि के कारण अपनी जन्मस्थली को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- 2024 के अंत तक दुनिया भर में लगभग 123.2 मिलियन लोग जबरन विस्थापित हो गए थे। इन विस्थापित लोगों में 40% बच्चे थे।
- एक-तिहाई से अधिक जबरन विस्थापित लोगों में सूडानी, सीरियाई, अफगान या यूक्रेनी नागरिक थे।
- वर्ष 2024 के अंत में 73.5 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित के रूप में रह रहे थे।
- आंतरिक रूप से विस्थापित से आशय है अपने देश में ही किसी अन्य जगह विस्थापित के रूप में रहना।
जबरन विस्थापन से उत्पन्न चुनौतियां:
- खाद्य संकट का सामना करने के लिए मजबूर होना: आजीविका समाप्त हो जाने की वजह से विस्थापित लोग बाहरी सहायता पर निर्भर हो जाते हैं। वहीं शरणार्थी शिविरों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- सार्वजनिक व्यय यानी सरकारी खर्चे में वृद्धि: जिन देशों में विस्थापित लोग रह रहे होते हैं वहां की सरकारों को इनके रहन-सहन और देखभाल के लिए अधिक व्यय करना पड़ता है।
- सामाजिक तनाव में वृद्धि: संसाधन सीमित होने की वजह से होस्ट देश के स्थानीय समुदाय और विस्थापितों के बीच प्रायः टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- बेरोजगारी की समस्या: विस्थापितों के आने से होस्ट देश का श्रम और उपभोक्ता बाजार प्रभावित होता है। चूंकि, अधिकतर विस्थापित लोग कम कुशल होते हैं, इसलिए वे होस्ट देश में अनौपचारिक और कम-कौशल वाले रोजगार करना शुरू कर देते हैं। इससे होस्ट देश के नागरिकों के लिए अनौपचारिक और कम-कौशल वाले रोजगार कम हो जाते हैं। इससे युवा एवं महिला श्रमिक अधिक प्रभावित होते हैं।
जबरन विस्थापन की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदम:
- ग्लोबल कॉम्पैक्ट फॉर माइग्रेशन (2018): इसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने अपनाया है। यह प्रवासन की समस्या से निपटने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
- यह कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता नहीं है।
- जबरन विस्थापन पर वैश्विक कार्यक्रम (GPFD): इसे 2009 में विश्व बैंक ने शुरू किया था। इसका उद्देश्य जबरन विस्थापन से निपटने के लिए वैश्विक विकास उपायों को सशक्त करना है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) के बारे में:
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