हिंद प्रशांत क्षेत्र में शक्तिशाली देशों के बीच जारी प्रतिद्वंद्विता और टैरिफ युद्ध से इस क्षेत्र के अलग-अलग गुटों में विभाजित होने और ध्रुवीकरण बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
'आसियान की केंद्रीय भूमिका' (ASEAN Centrality) क्या है?
- यह विचार इस सिद्धांत पर आधारित है कि ‘दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन’ यानी आसियान को "विकसित होती हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संरचना" का नेतृत्व करना चाहिए।
- यह सिद्धांत सोवियत संघ के विघटन के बाद उत्पन्न हुआ, जब इस क्षेत्र के देशों को संयुक्त राज्य अमेरिका के सैनिकों की अनुपस्थिति, जापान के पुनः सैन्यीकरण की संभावना, चीन के उदय और अन्य सुरक्षा मुद्दों को लेकर गंभीर अनिश्चितता का सामना करना पड़ा।
- भारत के प्रधान मंत्री द्वारा 2018 के शांगरी-ला संवाद में व्यक्त किए गए ‘मुक्त, खुले और मजबूत हिंद-प्रशांत’ के विज़न में भी इस सिद्धांत को रेखांकित किया गया।
'आसियान की केंद्रीय भूमिका' सिद्धांत के समक्ष खतरे
- संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन शीत युद्ध: यह युद्ध आसियान सदस्य देशों को विभाजित कर सकता है, क्योंकि कुछ सदस्य देशों के चीन के साथ तो कुछ सदस्य देशों के अमेरिका के साथ अच्छे संबंध हैं। ऐसे में आसियान के अलग-अलग मंचों पर सदस्य देशों के बीच सहयोग कठिन हो जाएगा।
- कमजोर होती अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था: संयुक्त राज्य अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के चलते पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) और आसियान रीजनल फोरम (ARAF) जैसे सहयोग-आधारित आसियान-केंद्रित मंच कमजोर हुए हैं।
- अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव: ये टैरिफ उस अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को अस्थिर कर रहे हैं, जिस पर आसियान निर्भर करता है। इसकी वजह से तनाव उत्पन्न हो रहा है और जवाबी व्यापारिक कार्रवाइयों को लेकर आसियान देशों के बीच एकता कमजोर हो रही है।
‘आसियान की केंद्रीय भूमिका’ को मजबूत करने के उपाय
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