ज्ञातव्य है कि 6 एवं 9 अगस्त, 1945 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘लिटिल बॉय’ और ‘फैट मैन’ नामक परमाणु बम क्रमशः हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिराए थे। इन परमाणु हमलों ने भीषण विनाश किया था और लोगों को लंबे समय तक रेडिएशन के दुष्प्रभाव का सामना करना पड़ा था।
हिरोशिमा परमाणु हमले के बाद भू-राजनीतिक प्रभाव
- द्वितीय विश्व युद्ध का अंत: जापान द्वारा 2 सितंबर, 1945 को आत्मसमर्पण दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया था।
- परमाणु हथियार रखने की हौड़ की शुरुआत: 1949 में सोवियत संघ द्वारा अपने पहले परमाणु परीक्षण के साथ ही विश्व में परमाणु हथियार रखने की स्पर्धा की शुरुआत हुई। आगे चलकर यह शीत युद्ध की विशेषता बन गई।
- ‘परस्पर सुनिश्चित विनाश (MAD)’ का सिद्धांत: यह एक प्रकार का निवारक सिद्धांत है। यह सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि एक महाशक्ति द्वारा किए गए परमाणु हमले का जवाब इतने भीषण जवाबी परमाणु हमले से दिया जाएगा कि दोनों देशों का विनाश हो जाएगा।
- असैन्य परमाणु सहयोग: 1957 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की स्थापना असैन्य परमाणु अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए की गई।
- निरस्त्रीकरण के लिए प्रयास: ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ को ‘परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए वार्ता हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का एकमात्र बहुपक्षीय मंच’ बनाया गया।
हिरोशिमा के बाद परमाणु हथियारों से संबंधित वैश्विक संधियां एवं पहलें
- आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि (1963): यह वायुमंडल एवं बाह्य अंतरिक्ष में और जल के भीतर परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाती है।
- परमाणु हथियार अप्रसार संधि (NPT) (1970): इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और परमाणु तकनीकों के प्रसार को रोकना है।
- व्यापक परमाणु-परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) (1996): यह संधि सैन्य या असैन्य उद्देश्यों से किसी भी प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है।
- निरस्त्रीकरण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय: यह संगठन वैश्विक स्तर पर सामान्य और पूर्ण निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है।
- अन्य पहलें: पैक्ट फॉर फ्यूचर, परमाणु हथियार निषेध संधि आदि।