सुर्ख़ियों में क्यों?
आसियान (ASEAN) की केंद्रीयता की अवधारणा वास्तव में महाशक्तियों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता, व्यापारिक तनाव और बदलती वैश्विक व्यवस्था के कारण संकट में है। इससे निपटने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक सुधारों और मजबूत साझेदारियों की आवश्यकता है।
आसियान के बारे में

- स्थापना: आसियान की स्थापना 1967 में आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा-पत्र) पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।
- उद्देश्य: क्षेत्रीय आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में तेजी लाना; शांति, स्थिरता और कानून के शासन को बढ़ावा देना; शिक्षा, व्यापार, कृषि व उद्योग में सहयोग को प्रोत्साहित करना आदि।
- सचिवालय: जकार्ता (इंडोनेशिया)।
- सदस्य देश: 10 देश (मानचित्र देखिए)।
- इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड इसके संस्थापक सदस्य हैं।
- आसियान शिखर सम्मेलन: आसियान शिखर सम्मेलन: यह आसियान में सर्वोच्च नीति-निर्माण निकाय है। इसमें आसियान सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष शामिल होते हैं।
- आसियान चार्टर का अनुच्छेद 1.15: यह इस बात पर जोर देता है कि समूह का प्राथमिक लक्ष्य बाहरी भागीदारों के साथ अपने संबंधों और सहयोग के पीछे मुख्य प्रेरक शक्ति के रूप में आसियान की केंद्रीय एवं सक्रिय भूमिका को बनाए रखना है।
क्षेत्र में आसियान की केंद्रीयता की प्रासंगिकता
- सुरक्षा व स्थिरता: आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN Regional Forum: ARF) और आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ASEAN Defence Ministers' Meeting-Plus: ADMM-Plus) जैसे मंचों के माध्यम से, आसियान संगठन के सदस्य देशों और बाहरी शक्तियों को रक्षा, समुद्री एवं सुरक्षा संवाद के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- आर्थिक एकीकरण: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership: RCEP) आसियान की अगुवाई में शुरू हुई है। इस साझेदारी ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में व्यापारिक संबंधों को मजबूत किया है।
- मानक-स्थापना: जैसे-मित्रता और सहयोग संधि (Treaty of Amity and Cooperation: TAC), जो मूल रूप से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिए थी, अब एक बड़ी क्षेत्रीय व्यवस्था बन गई है। चीन, अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियां भी इसकी हस्ताक्षरकर्ता हैं।
आसियान की केंद्रीयता के समक्ष चुनौतियां
- महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता: अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा से आसियान के हाशिए पर जाने और क्षेत्रीय एकता के कमजोर होने का खतरा उत्पन्न हो रहा है (जैसे- चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव बनाम अमेरिका के नेतृत्व वाली हिंद-प्रशांत रणनीति)।
- अमेरिकी टैरिफ: ये टैरिफ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था को अस्थिर कर रहे हैं। स्थिर व्यापार-व्यवस्था आसियान की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- क्षेत्रीय मंचों तथा उनके अधिकार क्षेत्र को लेकर टकराव: QUAD और AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम व संयुक्त राज्य अमेरिका) जैसे नए लघु समूह आसियान के नेतृत्व वाले सुरक्षा तंत्रों (जैसे- पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, ADMM–प्लस आदि) को चुनौती देते हैं।
- आंतरिक मतभेद: उदाहरण के लिए- जहां एक ओर वियतनाम आसियान के सदस्यों पर चीन का सामना करने के लिए दबाव डाल रहा है, वहीं दूसरी ओर कंबोडिया और लाओस जैसे देश अवसंरचना विकास के लिए चीन के ऋण पर तेजी से निर्भर होते जा रहे हैं।
- विश्वसनीयता का संकट: म्यांमार संकट पर आसियान अपनी "पांच-सूत्रीय सहमति" को लागू करने में विफल रहा है। इससे बाहरी शक्तियों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का अवसर मिला है।
- कमजोर संस्थागत क्षमता: आसियान सचिवालय के सीमित संसाधन महत्वाकांक्षी पहलों को लागू करने में बाधा उत्पन्न करते हैं।
आसियान की केंद्रीयता को मजबूत करने के लिए आगे की राह
- आसियान को अपग्रेड करना: आसियान का कम्युनिटी विज़न 2045, आसियान राजनीतिक-सुरक्षा समुदाय की रणनीतिक योजना, तथा आसियान आर्थिक समुदाय (ASEAN Economic Community: AEC) की रणनीतिक योजना (2026-2030) इस दिशा में सही कदम हैं।
- समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ सहयोग: उदाहरण के लिए- यूरोपीय संघ (EU) आसियान और इसके अधिकतर सदस्यों के साथ मुक्त व्यापार समझौते चाहता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।
- औपचारिक परामर्श तंत्र को बढ़ाना: जैसे कि QUAD के साथ साझा चिंताओं पर संयुक्त पहलों का प्रस्ताव करना चाहिए, और लघु समूह वाली व्यवस्थाओं को आसियान के नेतृत्व वाली प्रक्रियाओं से जोड़ने के उपाय तलाशने चाहिए।
- भारत के साथ घनिष्ठ साझेदारी: क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने, आर्थिक विविधीकरण को बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता को प्रोत्साहित करने में भारत एवं आसियान के साझा हित हैं।
आसियान की केंद्रीयता में बदलाव से भारत कैसे निपट सकता है?
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निष्कर्ष
आसियान दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रमुख संगठन बनकर उभरा है। भविष्य में मुख्य दृष्टिकोण दक्षिण-पूर्व एशिया के विकास और प्रगति में इसकी केंद्रीयता को पुनः बहाल करने का होना चाहिए। इसके साथ ही सदस्य देशों की यह प्रतिबद्धता भी आवश्यक है कि वे बाहरी शक्तियों की रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रभावित हुए बिना क्षेत्रीय सहयोग और संतुलन को बनाए रखें।